Tuesday, 27 May 2025

मेरे बहुत सारे मित्र अज्ञात में चले गये ---

 मेरे बहुत सारे मित्र अज्ञात में चले गये ---

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कुछ ने तो अपने आप को बेकार पाया, कुछ अपनों की उपेक्षा से व्यथित हो कर चले गये। दो-चार केवल वे ही बचे हैं जिन्होनें अपना जीवन राम जी को सौंप दिया, और इस सत्य को स्वीकार कर लिया कि -- "जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।" उन बचे हुओं का भी कुछ पता नहीं है कि वे कहाँ कहाँ हैं।
राम नाम अंतिम सत्य है जिसे सब को स्वीकार करना ही होगा, चाहे रो कर करो चाहे हँसकर। अपेक्षाएँ कभी किसी की पूरी नहीं होतीं। अपेक्षाएँ ही सब दुःखों का मूल है। जीवन में अंततः मैंने उन्हीं को सुखी पाया जिन्होंने आध्यात्म की शरण ले ली। जब तक हाथ पैर चलते हैं, दिमाग काम करता है, मनुष्य को सम्भल जाना चाहिये। जय सियाराम !!
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ मई २०१४

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