भगवान अपनी उपासना स्वयं ही करेंगे ---
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इस संसार में अनेक तरह के अनेक कष्ट हैं, उनके निवारणार्थ साधनाएँ भी अनेक हैं। लेकिन अपने स्वार्थ के लिए परमात्मा को कष्ट देना मैं उचित नहीं समझता। परमात्मा से कुछ भी नहीं चाहिए, कुछ उनको बापस ही देना है। अपना अन्तःकरण और सम्पूर्ण पृथकता का बोध उन्हें किसी भी तरह बापस लौटाना है।
वे सच्चिदानंद और सर्वस्व हैं। जो भी आराधना या उपासना उन्हें करनी है, वह वे स्वयं ही करेंगे। मैं तो उनका एक उपकरण निमित्त मात्र हूँ जिसका वे चाहे जैसे उपयोग करें।
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जिन भी उपासनाओं का मैं साक्षी हूँ, वे सब वैदिक हैं, जिन्हें वैदिक युग से तपस्वी करते आए हैं। उपनिषदों में व गीता में उनका उल्लेख है। मुझे उनमें कुछ भी नहीं जोड़ना है। बाकी सब परमात्मा की महिमा है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
११ मई २०२४
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