भगवान की सुनूँ या स्वयं की? --- भगवान एक बहुत गहरी बात कह रहे हैं जो समझने में बहुत कठिन है। लेकिन उसे सुनना भी पड़ेगा और उस का अनुसरण भी करना ही होगा ---
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किसी भी अनात्म विषय पर चिंतन मात्र से आजकल बड़ी पीड़ा होती है, अनात्म विषयों का चिंतन करने वालों का कुसंग भी दुःखदायी होता है। लेकिन भगवान एक दूसरी ही बात कह रहे हैं। जब भी भगवान का ध्यान करता हूँ, भगवान कहते हैं कि यह सम्पूर्ण सृष्टि तुम स्वयं हो। यह सारी सृष्टि तुम्हारा ही प्रतिबिंब है। अपने प्रतिबिंब पर दोषारोपण मत करो। स्वयं को परिवर्तित करो, और यह भौतिक सृष्टि भी परिवर्तित हो जायेगी।
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यह अब तक का भौतिक जीवन तो नष्ट हो गया है। जीवन में बहुत कुछ करना था लेकिन चिड़िया चुग गई खेत। अब उस पर पछताना या विचार करना भी व्यर्थ है। एक ही कार्य रह गया है कि जो भी समय अवशिष्ट है उसका अधिकतम और सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जाये।
ॐ इति॥ ॐ शुभम् भवतु ॥ ॐ शिवम भवतु॥ ॐ स्वस्ति॥ ॐ श्रीनारायण हरिः॥
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२४
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