Saturday, 26 April 2025

इस ब्रह्मांड में कोई भी या कुछ भी हम से पृथक नहीं है, हम सब के साथ एक हैं ---

परमात्मा को कुछ लौटाना है। जिस दिन वे अपना दिया हुआ सामान हम से बापस ले लेंगे, उसी क्षण हम परमात्मा को उपलब्ध हो जाएँगे। उनका दिया हुआ एकमात्र सामान जो अभी भी इस समय हमारे पास है, वह है तथाकथित रूप से हमारा "अन्तःकरण" (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)। जिस क्षण यह अन्तःकरण उनका हो जाएगा, माया का कोई भी अस्त्र (आवरण व विक्षेप) हम पर नहीं चलेगा। उनके और हमारे मध्य कोई भेद भी नहीं रहेगा।

चाहे कोई भी आध्यात्मिक साधना हो, साधना वो ही करनी चाहिए जो निज स्वभाव के अनुकूल और सहज हो। जिस साधना में किसी भी प्रकार का लोभ यानि प्रलोभन हो, वह नहीं करनी चाहिए। हमारा लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है, न कि किसी प्रकार के भोग की प्राप्ति। जहां भोग का प्रलोभन हो वहाँ मैं नहीं टिक सकता। यह मैं बहुत सोच समझ कर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ लिख रहा हूँ। २७ अप्रैल २०२४

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