Friday, 18 April 2025

जो स्वयं से पृथक है, उसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। जो स्वयं के साथ एक है, वही मुझे स्वीकार्य है ---

 जो स्वयं से पृथक है, उसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। जो स्वयं के साथ एक है, वही मुझे स्वीकार्य है।

.
भगवान का जो भी रूप मेरे साथ एक है वही मुझे स्वीकार्य है, मैं उसी के प्रति समर्पित हूँ। भगवान कभी भी मुझ से दूर नहीं थे, इस जन्म से पूर्व भी मेरे साथ एक थे, और इस भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी मेरे साथ एक रहेंगे। इस जन्म में वे ही माँ-बाप, सगे-संबंधी, शत्रु-मित्र और परिचित-अपरिचित के रूप में आये। मुझे किसी से भी जो भी प्रेम मिला है, वह भगवान का ही प्रेम था। वे हर समय मेरे साथ एक हैं। उनका साथ शाश्वत है। वे निकटतम से भी अधिक निकट, और प्रियतम से भी अधिक प्रिय हैं। जब हम सर्वात्मभाव से एकता को देखते हैं, तब हम परमात्मा के साथ एक हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में उनका शाश्वत वचन है ---
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् -- जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
He who sees Me in everything and everything in Me, him shall I never forsake, nor shall he lose Me.
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर १९ अप्रेल २०२५

No comments:

Post a Comment