Friday, 4 June 2021

हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य है -- परमात्मा की प्राप्ति ---

 हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य है ... परमात्मा की प्राप्ति .....

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परमात्मा की प्राप्ति हमें क्यों नहीं होती और वे कैसे प्राप्त हों? इसका जितना स्पष्ट वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता में है उतना अन्यत्र कहीं भी नहीं है| स्वाध्याय और पुरुषार्थ तो हमें स्वयं को ही करना होगा, कोई दूसरा इसे हमारे लिए नहीं कर सकता| हमें न तो किसी मध्यस्थ व्यक्ति को प्रसन्न करना है और न किसी मध्यस्थ व्यक्ति के पीछे पीछे भागना है| किसी भी तरह के वाद-विवाद में न पड़ कर अपना समय नष्ट न करें और उसका सदुपयोग परमात्मा के अपने प्रियतम रूप के नाम-जप और ध्यान में लगाएँ|
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कमर को सीधी कर के बैठें, भ्रूमध्य में जप और ध्यान करें| एकाग्रचित्त होकर उस ध्वनि को सुनते रहें जो ब्रह्मांड की ध्वनि है| हम यह देह नहीं है, परमात्मा की अनंतता हैं| अपनी सर्वव्यापकता पर ध्यान करें| फिर पाएंगे कि परमात्मा तो वहीं बैठे हैं, जहाँ पर हम हैं|
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः|९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||
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परमात्मा से "परम प्रेम" और "समर्पण" का स्वभाव हमें अपने "शिवत्व" का बोध कराता है| अपने "भौतिक व्यक्तित्व से मोह" हमारे "लोभ व अहंकार" को जगाकर हमें "हिंसक" बनाता है| स्वयं के भौतिक व्यक्तित्व की दासता और मोह हमें हिंसक बना देता है| इस व्यक्तित्व की दासता से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है ..... "परमात्मा से परम-प्रेम और समर्पण"| जब हम परमात्मा को "प्रेम" और "समर्पण" करते हैं तब वही "प्रेम" और "समर्पण" अनंत गुणा होकर हमें ही बापस मिलता है| तब हम "जीव" नहीं, स्वयं साक्षात "शिव" बन जाते हैं|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अप्रेल २०२०

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