शरणागति और समर्पण का मार्ग ही श्रेष्ठतम है .....
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वर्तमान काल में आध्यात्मिक योग-साधना के लिए भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताया हुआ शरणागति व समर्पण का मार्ग ही सर्वसुलभ और सर्वश्रेष्ठ है| इसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान .... तीनों ही आ जाते है| यदि प्रबल बौद्धिक जिज्ञासा और समझने की क्षमता है तो उपनिषदों का स्वाध्याय कीजिये| जहाँ परमप्रेम और स्वभाविक अभीप्सा हैं, वहीं शरणागति द्वारा समर्पण की संभावना है| किसी भी तरह की आकांक्षा, कामना या अपेक्षा तुरंत भटका देगी|
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वर्तमान समय में पातंजलि ऋषि के नाम पर हठयोग के जो आसन-प्राणायाम आदि सिखाये जाते हैं, वे हठयोग के हैं, जिनका वर्णन पातंजलि योग-दर्शन में कहीं भी नहीं है| अतः उनके लिए पातंजलि ऋषि का नाम लेना असत्य का प्रचार और गलत बात है| हठयोग के आचार्य तो गुरु गोरखनाथ और घेरण्ड मुनि हैं|
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हठयोग के तीन ग्रंथ हैं .... (१) शिव संहिता, (२) घेरण्ड संहिता (३) हठयोग प्रदीपिका|
शिव-संहिता और हठयोग-प्रदीपिका ..... नाथ संप्रदाय के ग्रंथ हैं| शिव-संहिता के रचयिता गुरु मत्स्येंद्रनाथ को माना जाता है जो गोरखनाथ के गुरु थे| हठयोगप्रदीपिका के रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वात्मारामनाथ को माना जाता है|
घेरंड-संहिता के रचयिता घेरंड मुनि हैं| यह ज्ञान उन्होने अपने शिष्य चंड कपाली को दिया था|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार योग का अर्थ है ....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
अर्थात् हे धनंजय आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो| यह समभाव ही योग कहलाता है||
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आचार्य शंकर के अनुसार हमें जीवन का हर कार्य केवल ईश्वर के लिये करना चाहिए| यह भावना भी नहीं होनी चाहिए कि "ईश्वर मुझपर प्रसन्न हों"| इस आशारूप आसक्ति को भी छोड़ कर, फलतृष्णारहित कर्म किये जाने पर अन्तःकरण की शुद्धि से उत्पन्न होने वाली ज्ञानप्राप्ति तो सिद्धि है, और उससे विपरीत (ज्ञानप्राप्ति का न होना) असिद्धि है| ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर, अर्थात् दोनोंको तुल्य समझकर कर्म करना चाहिए| यही जो सिद्धि और असिद्धि में समत्व है इसीको योग कहते हैं।
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तंत्र शास्त्रों के अनुसार योग साधना का उद्देश्य परम शिवभाव को प्राप्त करना है|
भगवान वासुदेव को नमन !!
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"वसुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्दनं| देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम्||"
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् || पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२०
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