फेसबुक के अनुभव .....
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फेसबुक पर आज से दो-चार वर्ष पहिले बहुत अच्छे-अच्छे गंभीर लेखक और पाठक हुआ करते थे| अब तो नगण्य हैं| मैं जुलाई २०११ में फेसबुक पर आया तब हिन्दी में लिखने का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं था| फेसबुक पर ही कुछ साधु-संतों ने मुझे हिन्दी में लेख लिखने की प्रेरणा दी और खूब प्रोत्साहन दिया| उस समय मुझे हिन्दी के अधिक शब्दों का ज्ञान नहीं था| मैंने अपने हिन्दी के शब्दकोष को बढ़ाया और हिन्दी में लिखना आरंभ किया तो इतना मजा आया कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा| बहुत गंभीर आध्यात्मिक विषयों पर भी सहज रूप से लिखने लगा| शुरू-शुरू में कुछ भूलें हुईं पर किसी ने बुरा नहीं माना और खूब प्रोत्साहन दिया|
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सबसे अच्छी बात तो यह हुई कि फेसबुक पर ही देश के अनेक विद्वानों, संतों और भक्तों से परिचय हुआ, जो अन्यथा नहीं हो सकता था| कुछ समूहों में धर्म और ज्ञान-विज्ञान पर खूब चर्चाएँ हुआ करती थीं, जिनसे बहुत कुछ सीखा| मैं सभी के नाम तो नहीं लिख सकता, पर दो-तीन नाम अवश्य लिखूँगा जिनसे परिचय फेसबुक पर ही हुआ था|
सबसे पहिला परिचय आचार्य सियारामदास नैयायिक से हुआ| उन्होने मुझे हिन्दी में लिखने की प्रेरणा दी और उनके व कुछ अन्य संतों के आशीर्वाद से मुझे लिखने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई| वे रामानंदी वैष्णव संप्रदाय के बहुत बड़े आचार्य हैं|
दंडी स्वामी मृगेंद्र सरस्वती (सर्वज्ञ शंकरेंद्र) के आशीर्वाद से मुझे वेदान्त का व्यवहारिक ज्ञान हुआ| वेदान्त पर साहित्य तो खूब पढ़ा था पर कभी कोई प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं हुई थी| कई अनुत्तरित प्रश्न थे| उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और उनकी उपस्थिति मात्र से ही मुझे कई दिव्य अनुभूतियाँ हुईं जिनसे वेदान्त का व्यवहारिक ज्ञान हुआ और सारे संशय दूर हुए| वे एक सिद्ध पुरुष हैं|
भुवनेश्वर के श्री अरुण उपाध्याय जैसे अलौकिक विलक्षण परम विद्वान से परिचय तो फेसबुक पर ही हुआ था और दो बार उनसे मिलने का सौभाग्य भी मिला| वे चलते-फिरते ज्ञान के भंडार हैं| उनके जैसा कोई अन्य विद्वान मुझे आज तक नहीं मिला| वे पूर्व जन्म के कोई सिद्ध पुरुष हैं जिनका ज्ञान कई जन्मों का है|
भक्तों में इंदौर के स्वर्गीय श्री हेमंत मिश्र उच्च कोटि के शिवभक्त थे| वे समय समय पर बड़े-बड़े विशाल यज्ञ करवाया करते थे जिन में करोड़ों रुपयों का खर्च हुआ करता था| दो बार उनके साथ हवन करने का अवसर मुझे भी मिला है|
इंदौर के ही डॉ. सुमित शुक्ल और उनकी धर्मपत्नी डॉ.(श्रीमती) सुधि शुक्ल दोनों ही विलक्षण व्यक्तित्व के धनी और परम भक्त हैं| उनसे मेरा बहुत अच्छा प्रेम है|
और भी अनेक दिव्य विभूतियाँ हैं जिनसे परिचय फेसबुक पर ही हुया था| कुछ से मिलना भी हुआ और कुछ से नहीं| वे सब मेरे हृदय में हैं और उन्हें मेरे हृदय का पूर्ण प्रेम समर्पित है|
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क्रिया और वेदान्त की साधना से मुझे अनेक लाभ हुए हैं| अपनी कमियों का पता चला है जिनमें से कुछ तो दूर हुई हैं, और बाकी बची हुई भी दूर हो जाएंगी| सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह हुई है कि कोई भी मुझसे दूर नहीं है| मैं अब किसी के अभाव को अनुभूत नहीं करता| परमात्मा में सभी मेरे साथ एक हैं| सारा ब्रह्मांड मेरा घर है और सारी सृष्टि मेरा परिवार| मैं सभी के साथ एक हूँ| कोई भी मुझसे पृथक नहीं है| क्रियायोग की साधना से प्राण-तत्व व आकाश-तत्व का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, और कूटस्थ-चैतन्य में स्थिति होती है| परमशिव का बोध भी बुद्धि से नहीं, ध्यान की अनुभूतियों से ही होता है|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन| ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२०
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पुनश्च :--- प्रयागराज के स्वर्गीय पं. मिथिलेश द्विवेदी जी को भी मैं कभी नहीं भूल सकता| वे बड़ी प्रेरणात्मक बातें कहते थे और कभी निराश नहीं होने दिया| एक ही अफसोस रहा कि कभी उनसे मिलने का संयोग नहीं हुआ| उन्होंने अपनी हिन्दी भाषा में लिखी एक पुस्तक मुझे भेंट में दी थीं जो उच्च कोटि की साहित्यिक कृति है| वे एक भक्त और साहित्यकार थे| उर्दू भाषा पर भी उनका बहुत अच्छा अधिकार था| देवनागरी लिपि में लिखा उर्दू का एक लेख भी उन्होनें मुझे नेट पर ही भेजा था जिस से पता चला कि वे उर्दू के भी विद्वान थे| वे चाहे भौतिक देह में न हों पर मेरे हृदय में हैं|
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ओड़ीशा के ही भक्त श्री सोमदत्त शर्मा है जिनसे कई बार चलभाष पर ही सत्संग होता है|
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