Saturday, 29 May 2021

"गीता के अनुसार तप" का अर्थ क्या है? ---

 "गीता के अनुसार तप" का अर्थ क्या है? ---

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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --
"देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्। ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते॥१७:१४॥"
अर्थात् -- "देव, द्विज (ब्राह्मण), गुरु और ज्ञानी जनों का पूजन, शौच, आर्जव (सरलता), ब्रह्मचर्य और अहिंसा, यह शरीर संबंधी तप कहा जाता है॥
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भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इसकी व्याख्या यों की है --
"देवाश्च द्विजाश्च गुरवश्च प्राज्ञाश्च देवद्विजगुरुप्राज्ञाः तेषां पूजनं देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम्? शौचम्? आर्जवम् ऋजुत्वम्? ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शरीरनिर्वर्त्यं शारीरं शरीरप्रधानैः सर्वैरेव कार्यकरणैः कर्त्रादिभिः साध्यं शारीरं तपः उच्यते॥"
अर्थात् -- देव, ब्राह्मण, गुरु, और बुद्धिमान ज्ञानी -- इन सबका पूजन;
शौच (पवित्रता), आर्जव (सरलता), ब्रह्मचर्य और अहिंसा --
ये सब शरीर सम्बन्धी (शरीरद्वारा किये जानेवाले) तप कहे जाते हैं, अर्थात् शरीर जिनमें प्रधान है; ऐसे समस्त कार्य कर्ता द्वारा किये जायें, वे शरीर सम्बन्धी तप कहलाते हैं।

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