परमात्मा से प्रेम और उन का ध्यान भी एक नशा है| जिस को भी इस नशे से प्रेम हो जाता है और इस की आदत पड़ जाती है वह इसके बिना नहीं रह सकता, चाहे प्राण ही चले जाएँ| उसे बाकी की सब चीजें फालतू लगती हैं| हिमालय की दुर्गम कन्दराओं में, भयावह वनों के एकांत, बीहड़ और निर्जन स्थानों पर रहने वाले संत-महात्मा अपने प्राणों की बाजी लगाकर परमात्मा के नशे में ही जीवित रहते हैं| वास्तव में उनका स्वयं का तो कोई अस्तित्व ही नहीं रहता, परमात्मा स्वयं ही उनके माध्यम से जीते हैं| अन्यथा जहाँ हिंसक प्राणियों, तस्कर-लुटेरों, अधर्मी/विधर्मियों, नास्तिकों, और बीमारी व भूख-प्यास से प्राण जाने की हर पल आशंका रहती है, ऐसे असुरक्षित स्थानों, परिस्थितियों व वातावरण में कौन रहना चाहेगा? घर-गृहस्थी व समाज में भी ऐसे लोग तिरस्कृत व उपेक्षित होकर ही रहते हैं| समाज में भी लोग उनके बारे में यही सोचते हैं कि यह कमाता-खाता क्यों नहीं है, क्या इसे अन्य कोई काम-धंधा नहीं है? जो ऐसे लोगों के पास जाते हैं वे भी यही सोच कर जाते हैं कि पता नहीं इस से हमें क्या कुछ मिल जाएगा|
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जिन्हें भगवान से सच्चा प्रेम होता है वे ही सबसे पहिले समाज में ठगों से ठगे जाते हैं| आजकल समाज में ठग लोग दूसरों का धन ठगने के लिए भी भक्ति की बड़ी बड़ी बातें करते हैं| ऐसे लोग समाज पर कलंक हैं जो भक्ति का दिखावा कर के दूसरों को ठगते हैं|
"कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोई| आप ठगे सुख उपजे, और ठगे दुःख होई||"
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यह भी एक नशा है जो मुझे ये सब लिखने को बाध्य कर देता है| यदि किसी को मेरे इस नशे की आदत से कोई तकलीफ है तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ| वे मुझे माफ करें| तमाशबीनों के फालतू प्रश्नों का कोई उत्तर मेरे पास नहीं है|
ॐ तत्सत् !!
१५ मई २०२०
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पुनश्च :--- एक बार एक बीहड़ स्थान पर जहाँ जाने में भी डर लगता है, मेरे एक मित्र मुझे एक महात्मा से मिलाने ले गए| पास में ही गंगा जी बहती थीं| भूमि को खोद कर एक गुफा सी उन्होने बना रखी थी जिस में वे रहते थे| उन महात्मा जी के सिर के बाल बहुत घने और कम से कम भी छह-सात फीट लंबे थे| अपने बालों के आसन पर ही बैठ कर वे भगवान के ध्यान में मस्त रहते थे| मैंने उनसे पूछा कि इस चोर-डाकुओं के इलाक़े में वे हिंसक प्राणियों के मध्य अकेले कैसे रह लेते हैं और क्या खाते हैं? उन्होने बताया कि पहिले तो वे मुट्ठी भर भूने हुए चने खाकर ही कई महीनों तक जीवित रहे| फिर एक डिब्बे में रखे हुए कुछ गेहूँ व दालें मिली जुली दिखाईं और कहा कि यह अगले छह माह का राशन है| एक मुट्ठी भर अनाज भिगो देते हैं और उसके अंकुरित होने पर खा लेते हैं| चोर-डाकू और हिंसक प्राणी परेशान नहीं करते क्योंकि मैं उनकी किसी परेशानी का कारण नहीं हूँ| रुपए-पैसों को तो वे छूते भी नहीं थे|
मुझे ऐसे भी कई महात्मा मिले हैं जो जीवित रहने के लिए झरनों का पानी पी लेते और जंगल में कोई फल खाकर या घास चबा कर ही जीवित रह लेते थे|
वास्तव में भगवान ही उनके योग-क्षेम को देखते हैं|
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जिन्हें भगवान से सच्चा प्रेम होता है वे ही सबसे पहिले समाज में ठगों से ठगे जाते हैं| आजकल समाज में ठग लोग दूसरों का धन ठगने के लिए भी भक्ति की बड़ी बड़ी बातें करते हैं| ऐसे लोग समाज पर कलंक हैं जो भक्ति का दिखावा कर के दूसरों को ठगते हैं|
"कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोई| आप ठगे सुख उपजे, और ठगे दुःख होई||"
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यह भी एक नशा है जो मुझे ये सब लिखने को बाध्य कर देता है| यदि किसी को मेरे इस नशे की आदत से कोई तकलीफ है तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ| वे मुझे माफ करें| तमाशबीनों के फालतू प्रश्नों का कोई उत्तर मेरे पास नहीं है|
ॐ तत्सत् !!
१५ मई २०२०
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पुनश्च :--- एक बार एक बीहड़ स्थान पर जहाँ जाने में भी डर लगता है, मेरे एक मित्र मुझे एक महात्मा से मिलाने ले गए| पास में ही गंगा जी बहती थीं| भूमि को खोद कर एक गुफा सी उन्होने बना रखी थी जिस में वे रहते थे| उन महात्मा जी के सिर के बाल बहुत घने और कम से कम भी छह-सात फीट लंबे थे| अपने बालों के आसन पर ही बैठ कर वे भगवान के ध्यान में मस्त रहते थे| मैंने उनसे पूछा कि इस चोर-डाकुओं के इलाक़े में वे हिंसक प्राणियों के मध्य अकेले कैसे रह लेते हैं और क्या खाते हैं? उन्होने बताया कि पहिले तो वे मुट्ठी भर भूने हुए चने खाकर ही कई महीनों तक जीवित रहे| फिर एक डिब्बे में रखे हुए कुछ गेहूँ व दालें मिली जुली दिखाईं और कहा कि यह अगले छह माह का राशन है| एक मुट्ठी भर अनाज भिगो देते हैं और उसके अंकुरित होने पर खा लेते हैं| चोर-डाकू और हिंसक प्राणी परेशान नहीं करते क्योंकि मैं उनकी किसी परेशानी का कारण नहीं हूँ| रुपए-पैसों को तो वे छूते भी नहीं थे|
मुझे ऐसे भी कई महात्मा मिले हैं जो जीवित रहने के लिए झरनों का पानी पी लेते और जंगल में कोई फल खाकर या घास चबा कर ही जीवित रह लेते थे|
वास्तव में भगवान ही उनके योग-क्षेम को देखते हैं|
हमारे सारे अभाव और कमियाँ परमात्मा में ही दूर होंगे ---
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हमारे में चाहे लाखों कमियाँ हों, हमारे साथ कितना भी अत्याचार और अन्याय हुआ हो, हम कितने ही असमर्थ और असहाय हों, पर निराशा की कोई बात नहीं है। हमारे कूटस्थ हृदय में परमात्मा स्वयं प्रत्यक्ष रूप से बिराजमान हैं। उन्हें उपासना द्वारा व्यक्त कीजिये। हमारी हर कमी दूर होगी। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अगस्त २०२१