Wednesday, 8 January 2020

गुरु-रूप-ब्रह्म ने उतारा पार भवसागर के .....

गुरु-रूप-ब्रह्म ने उतारा पार भवसागर के .....
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सदा ही प्रार्थना करता था ..... "गुरु रूप ब्रह्म उतारो पार भव सागर के"| एक दिन अचानक ही देखा कि झंझावातों से भरा, अज्ञात अनंत गहराइयों वाला अथाह भवसागर तो कभी का पार हो गया है| कब हुआ इसका पता ही नहीं चला| सामने सिर्फ ज्योतिर्मय ब्रह्मरूप गुरु महाराज थे, और कोई नहीं| जरा और ध्यान से देखा तो "मैं" भी नहीं था, सिर्फ गुरु महाराज ही थे, दूर दूर तक अन्य कोई नहीं दिखा| उस निःस्तब्धता में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई क्योंकि मैं तो था ही नहीं, प्रतिक्रिया करता भी कौन? दृष्टि, दृश्य और दृष्टा सब कुछ तो वे ही हो गए थे|
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गुरु महाराज मुस्कराये और मुझे अकेला छोड़, अज्ञात अनंत में विलीन हो गए| कोई शब्द नहीं, उन की उस मुस्कराहट ने ही तृप्त कर दिया| उन की वह परम ज्योति सदा ही समक्ष रहती है| उस ज्योति को ही अपना सर्वस्व समर्पित है| वह ज्योति ही परमशिव है, वही भगवान वासुदेव है, वही विष्णु है और वही परमब्रह्म है| भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ वही है|
उन्हीं से प्रार्थना है कि अंगुली पकड़ कर अपने साथ उस अथाह अनंत में ले चलो जहाँ अन्य कोई न हो| बहुत हो गया, अब और कुछ भी नहीं चाहिए|
गुरुरूप ब्रह्म को नमन:-----
"ब्रह्मानन्दं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्, भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ||"
"कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे |
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ||
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् |
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ||
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं-सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
ॐ तत्सत्! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जनवरी २०२०
"दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्| मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रय:||"

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