Wednesday, 8 January 2020

परमात्मा से प्रेम हमारा स्वभाव है .....

परमात्मा से प्रेम हमारा स्वभाव है .....
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हम परमात्मा से प्रेम करते हैं क्योंकि यह हमारा स्वभाव है| हम कुछ मांगने के लिए ऐसा नहीं करते हैं| हमें कुछ चाहिए भी नहीं, जो चाहिए वह तो हम स्वयं ही हैं| हम कोई मंगते-भिखारी नहीं, परमात्मा के अमृत पुत्र हैं| जो कुछ भी परमात्मा का है उस पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| स्वयं परमात्मा पर भी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|
सरिता प्रवाहित होती है, किसी के लिए नहीं| प्रवाहित होना उसका स्वभाव है| व्यक्ति .. स्वयं को व्यक्त करना चाहता है, यह उसका स्वभाव है| परमात्मा को हम व्यक्त करते है क्योंकि यह हमारा स्वभाव है|
जो लोग सर्वस्व यानि समष्टि की उपेक्षा करते हुए स्वहित की ही सोचते हैं, प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करती | वे सब दंड के भागी होंगे| समस्त सृष्टि ही अपना परिवार है और समस्त ब्रह्माण्ड ही अपना घर| यह देह और यह पृथ्वी भी बहुत छोटी है अपने निवास के लिए| अपना प्रेम सर्वस्व में पूर्णता से व्यक्त हो|
हम सब अपनी पूर्णता को उपलब्ध हों| ॐ तत् सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
६ जनवरी २०२०

3 comments:

  1. वाह,
    हे नाथ, तू ही मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है।

    आप बहुत खूबसूरत कार्य कर रहे हैं।

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  2. भगवान की भक्ति हमारा स्वभाव हो| भगवान के स्मरण, चिंतन व ध्यान में बिताया गया समय ही सार्थक है बाकी सारा तो मरुभूमि में जल की कुछेक बूंदों की तरह निरर्थक है|

    हम चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लें, कितने भी प्रवचन और उपदेश सुन लें, इनसे प्रभु नहीं मिलेंगे| पुस्तकें, प्रवचन और उपदेश सिर्फ प्रेरणा दे सकते हैं, इस से अधिक कुछ भी नहीं| परमात्मा से प्रेम और उनका ध्यान, गहन ध्यान, गहनतर ध्यान, गहनतम ध्यान, और उस ध्यान की निरंतरता ........ बस यही प्रभु तक पहुंचा सकते है|

    ॐ नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च ||
    ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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  3. हम इस जीवन में जो कुछ भी हैं वह पूर्वजन्म में मृत्यु के समय हुई भावनाओं के अनुरूप हैं| मृत्यु से पूर्व जीवन की सारी स्मृतियाँ सामने आती हैं| उनमें से जो प्रबलतम दृश्य हैं वे हृदयाकाश में अंकित हो जाते हैं| अगला जन्म उन्हीं भावों, संकल्पों व वासनाओं के अनुरूप होता है|

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