हृदय में भक्ति का स्थान सर्वोपरी है| किसी भी तरह के कर्मकांड से भक्ति अधिक महत्वपूर्ण है| भक्ति है परमात्मा के प्रति परमप्रेम| भक्ति को समझने के लिए देवर्षि नारद व ऋषि शांडिल्य द्वारा लिखे भक्ति सूत्रों का अध्ययन करें| हिन्दी में रामचरितमानस व संस्कृत में भागवत भी भक्ति के ही ग्रंथ हैं| बिना भक्ति के की गई कोई किसी भी तरह की साधना सफल नहीं हो सकती| ये सारे ग्रंथ किसी भी बड़ी धार्मिक पुस्तकों की दुकान पर मिल जाएँगे| गीता का भक्ति योग भी तभी समझ में आयेगा जब हमारे हृदय और आचरण में भक्ति होगी, अन्यथा नहीं| हृदय में भक्ति होगी तभी भगवान से भी मार्गदर्शन और उनकी कृपा प्राप्त होगी| गीता में व उपनिषदों में पूरा मार्गदर्शन है, कहीं भी अन्यत्र इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं है|
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भक्ति में किसी भी तरह का कोई दिखावा न करें| यह हमारे और परमात्मा के मध्य का निजी मामला है, किसी अन्य का इस से कोई संबंध नहीं है| यदि संस्कृत भाषा का ज्ञान है तो पुरुष-सूक्त, श्री-सूक्त आदि का पाठ भी करें| यदि संस्कृत में शुद्ध उच्चारण नहीं है तो रहने दें| भाषा के गलत उच्चारण से बचें| जिस भी भाषा का ज्ञान है उसमें ग्रन्थों के अनुवाद ही पढ़ें|
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भगवान से जैसी भी प्रेरणा मिलती है वैसी ही साधना करें| ध्यान साधना उन्नत साधकों के लिए है| जो इस मार्ग में उन्नत हैं वे ही ध्यान करें अन्यथा नहीं| हम गलत कर रहें हैं या सही कर रहे हैं, इसका मापदंड एक ही है और वह है .... भगवान की अनुभूति| किसी भी साधना से यदि भगवान की उपस्थिती का आभास होता है तब तो वह साधना सही है, अन्यथा कहीं न कहीं कोई बड़ी समस्या है| भगवान को ठगने का प्रयास न करें अन्यथा कोई ठग आकर आपका सब कुछ ठग ले जाएगा| हृदय में अच्छी निष्ठा होगी तो सच्चे निष्ठावान लोग मिलेंगे, अन्यथा अपनी अपनी भावनानुसार ही लोग मिलेंगे|
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जिस महात्मा के सत्संग से परमात्मा की उपस्थिती अनुभूत होती है, हृदय में भक्ति जागृत होती है, और हमारा आचरण सुधरता है, उसी महात्मा का सत्संग करें| अन्य किसी के पीछे पीछे किसी अपेक्षा से भागना समय की बर्बादी है| जो मिलना है वह स्वयं में हृदयस्थ भगवान से ही मिलेगा, किसी अन्य से नहीं|
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घर के एक कोने को अपने लिए आरक्षित रखें जहाँ बैठकर भगवान की भक्ति कर सकें| उस स्थान का प्रयोग अन्य किसी कार्य के लिए न करें| जब भी हृदय अशांत हो, वहाँ जाकर बैठ जाएँ, शांति मिलेगी| जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवान की प्राप्ति है| कुतर्कियों से दूर रहें| आजकल कई स्वघोषित धार्मिक लोग दूसरों को भ्रमित कर के ही अपना अहंकार तृप्त करते हैं| ऐसे लोगों का विष की तरह त्याग कर दें|
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सभी को शुभ कामनाएँ और प्यार| ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
४ जनवरी २०२०
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भक्ति में किसी भी तरह का कोई दिखावा न करें| यह हमारे और परमात्मा के मध्य का निजी मामला है, किसी अन्य का इस से कोई संबंध नहीं है| यदि संस्कृत भाषा का ज्ञान है तो पुरुष-सूक्त, श्री-सूक्त आदि का पाठ भी करें| यदि संस्कृत में शुद्ध उच्चारण नहीं है तो रहने दें| भाषा के गलत उच्चारण से बचें| जिस भी भाषा का ज्ञान है उसमें ग्रन्थों के अनुवाद ही पढ़ें|
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भगवान से जैसी भी प्रेरणा मिलती है वैसी ही साधना करें| ध्यान साधना उन्नत साधकों के लिए है| जो इस मार्ग में उन्नत हैं वे ही ध्यान करें अन्यथा नहीं| हम गलत कर रहें हैं या सही कर रहे हैं, इसका मापदंड एक ही है और वह है .... भगवान की अनुभूति| किसी भी साधना से यदि भगवान की उपस्थिती का आभास होता है तब तो वह साधना सही है, अन्यथा कहीं न कहीं कोई बड़ी समस्या है| भगवान को ठगने का प्रयास न करें अन्यथा कोई ठग आकर आपका सब कुछ ठग ले जाएगा| हृदय में अच्छी निष्ठा होगी तो सच्चे निष्ठावान लोग मिलेंगे, अन्यथा अपनी अपनी भावनानुसार ही लोग मिलेंगे|
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जिस महात्मा के सत्संग से परमात्मा की उपस्थिती अनुभूत होती है, हृदय में भक्ति जागृत होती है, और हमारा आचरण सुधरता है, उसी महात्मा का सत्संग करें| अन्य किसी के पीछे पीछे किसी अपेक्षा से भागना समय की बर्बादी है| जो मिलना है वह स्वयं में हृदयस्थ भगवान से ही मिलेगा, किसी अन्य से नहीं|
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घर के एक कोने को अपने लिए आरक्षित रखें जहाँ बैठकर भगवान की भक्ति कर सकें| उस स्थान का प्रयोग अन्य किसी कार्य के लिए न करें| जब भी हृदय अशांत हो, वहाँ जाकर बैठ जाएँ, शांति मिलेगी| जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवान की प्राप्ति है| कुतर्कियों से दूर रहें| आजकल कई स्वघोषित धार्मिक लोग दूसरों को भ्रमित कर के ही अपना अहंकार तृप्त करते हैं| ऐसे लोगों का विष की तरह त्याग कर दें|
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सभी को शुभ कामनाएँ और प्यार| ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
४ जनवरी २०२०
जो भी साधना हम करते हैं वह हमारे स्वयं के लिये नहीं अपितु भगवान के लिये ही करते है| उसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुक्ति नहीं, "आत्म समर्पण" है| अपने समूचे ह्रदय और शक्ति के साथ अपने आपको भगवान के हाथों में सौंप दो| कोई शर्त मत रखो, कोई चीज़ मत मांगो, यहाँ तक कि योग में सिद्धि भी मत मांगो| जो लोग भगवान से कुछ मांगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे मांगते हैं| परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं मांगते उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं|
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भगवान का शाश्वत वचन है -- "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि|"
यानी अपने आपको ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा|
"सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज | अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः|"
समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कर दूंगा --- शोक मत कर|
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न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि बल्कि कर्म तक को उन्हें समर्पित कर दो| साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक उन्हें समर्पित कर दो| साध्य भी वे ही हैं, साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||