मुमुक्षुत्व व फलार्थित्व ..... दोनों एक साथ नहीं हो सकते .....
.
हमारे वश में कुछ भी नहीं है| जगन्माता स्वयम् ही अंगुली पकड़ कर ले जाएगी| सब तरह के भौतिक और मानसिक अहंकार को त्याग कर उन के शरणागत होना पड़ेगा| किसी भी तरह की हीनता का या श्रेष्ठता का भाव नहीं होना चाहिए| अपना अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) उन्हें समर्पित करें| यही एकमात्र उपहार है जो हम भगवान को दे सकते हैं| निष्ठा और श्रद्धा होगी तो वे अंगुली थाम लेंगे|
.
बाहरी नामों से उलझन में न पड़ें| जगन्माता भी वे हैं और पिता भी वे हैं, राधा भी वे है और कृष्ण भी वे हैं, सीता भी वे हैं और राम भी वे हैं| राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, नारायण आदि सब वे ही हैं| जहां तक मेरी निजी व्यक्तिगत दृष्टि जाती है, मेरे लिए साकार रूप में वे श्रीकृष्ण हैं तो निराकार रूप में परमशिव हैं| जैसी स्वयं की भावना है वैसे ही वे भी स्वयं को व्यक्त करते हैं .....
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||४:११)"
.
जो भक्त जिस फल प्राप्ति की इच्छा से भगवान को भजते हैं, भगवान भी उन को उसी प्रकार भजते हैं| उन की कामना के अनुसार ही फल देकर उन पर अनुग्रह करते हैं| आचार्य शंकर के अनुसार एक ही व्यक्ति में मुमुक्षुत्व (मोक्ष की अभीप्सा) और फलार्थित्व (फल की कामना) दोनों एक साथ नहीं हो सकते| इसलिये जो फल की इच्छा वाले हैं उन्हें फल, व जो मुमुक्षु हैं, भगवान उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं| यह सब हमारे स्वयं पर निर्भर है कि हम भगवान से क्या चाहते हैं|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०१९
.
हमारे वश में कुछ भी नहीं है| जगन्माता स्वयम् ही अंगुली पकड़ कर ले जाएगी| सब तरह के भौतिक और मानसिक अहंकार को त्याग कर उन के शरणागत होना पड़ेगा| किसी भी तरह की हीनता का या श्रेष्ठता का भाव नहीं होना चाहिए| अपना अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) उन्हें समर्पित करें| यही एकमात्र उपहार है जो हम भगवान को दे सकते हैं| निष्ठा और श्रद्धा होगी तो वे अंगुली थाम लेंगे|
.
बाहरी नामों से उलझन में न पड़ें| जगन्माता भी वे हैं और पिता भी वे हैं, राधा भी वे है और कृष्ण भी वे हैं, सीता भी वे हैं और राम भी वे हैं| राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, नारायण आदि सब वे ही हैं| जहां तक मेरी निजी व्यक्तिगत दृष्टि जाती है, मेरे लिए साकार रूप में वे श्रीकृष्ण हैं तो निराकार रूप में परमशिव हैं| जैसी स्वयं की भावना है वैसे ही वे भी स्वयं को व्यक्त करते हैं .....
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||४:११)"
.
जो भक्त जिस फल प्राप्ति की इच्छा से भगवान को भजते हैं, भगवान भी उन को उसी प्रकार भजते हैं| उन की कामना के अनुसार ही फल देकर उन पर अनुग्रह करते हैं| आचार्य शंकर के अनुसार एक ही व्यक्ति में मुमुक्षुत्व (मोक्ष की अभीप्सा) और फलार्थित्व (फल की कामना) दोनों एक साथ नहीं हो सकते| इसलिये जो फल की इच्छा वाले हैं उन्हें फल, व जो मुमुक्षु हैं, भगवान उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं| यह सब हमारे स्वयं पर निर्भर है कि हम भगवान से क्या चाहते हैं|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०१९
No comments:
Post a Comment