सुख, शांति, सुरक्षा, आनंद, तृप्ति और संतुष्टि .... मुझे परमात्मा के ध्यान में ही मिलती है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है| अतः अधिकाधिक समय पूर्ण समर्पित भाव से इसी दिशा में लगायेंगे| पूरा मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा से प्राप्त है, कोई अभाव नहीं है| सिर्फ स्वयं के प्रयासों में ही कमी है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| इस कमी को भी पूरी लगन और निष्ठा से दूर करेंगे| मेरे चिंतन पर सबसे अधिक प्रभाव गीता, वेदान्त और योगदर्शन का है जो अपने आप में पूर्ण है|
(१) कर्मयोग :-- परमात्मा की अनुभूतियों की निरंतरता और उनके प्रकाश का विस्तार ही मेरा कर्मयोग है|
(२) ज्ञानयोग :-- कूटस्थ चैतन्य में स्थिति ही मेरा ज्ञानयोग है|
(३) भक्तियोग :-- परमप्रेम रूपी अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति ही मेरा भक्तियोग है|
अब बचा ही क्या है? ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०१९
(१) कर्मयोग :-- परमात्मा की अनुभूतियों की निरंतरता और उनके प्रकाश का विस्तार ही मेरा कर्मयोग है|
(२) ज्ञानयोग :-- कूटस्थ चैतन्य में स्थिति ही मेरा ज्ञानयोग है|
(३) भक्तियोग :-- परमप्रेम रूपी अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति ही मेरा भक्तियोग है|
अब बचा ही क्या है? ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०१९
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल|
ReplyDeleteईश का वह रहस्य वरदान, जिसे तुम कभी न जाना भूल||"
अब तक मैं जिन प्रतिकूल परिस्थितियों को दोष देता आया था वे मेरे आध्यात्मिक विकास के लिए सर्वाधिक अनुकूल थीं| भगवान किसी पर अकृपा नहीं करते| भगवान से बड़ा हमारा हितैषी अन्य कोई नहीं है| वे कहते हैं.....
"भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्| सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ||५:२९||
(साधक भक्त) मुझे यज्ञ और तपों का भोक्ता और सम्पूर्ण लोकों का महान् ईश्वर तथा भूतमात्र का सुहृद् (मित्र) जानकर शान्ति को प्राप्त होता है||
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
२७ दिसंबर २०१९