अहंकार पतन का मार्ग है .....
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मेरे एक घनिष्ठ मित्र हैं जो बहुत अधिक धनी व्यक्ति थे| धन के नशे में अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं थे| हालाँकि उनमें सदगुण भी बहुत अधिक थे| बड़े परोपकारी, दानवीर, विद्वान् और राष्ट्रभक्त थे| पर अहंकार उनका बड़ा प्रबल था| पूर्वजन्म के कुछ संस्कारों के कारण ही मेरी उनसे मित्रता थी जिसे आप उनकी एक विवशता भी समझ सकते हैं| जिससे भी उन्होंने मित्रता की वे सब उनसे कुछ न कुछ अपेक्षा ही रखते थे, लोगों ने उन्हें बहुत अधिक ठगा| पर मेरी उनसे कभी भी कोई अपेक्षा नहीं रही, इस कारण वे मेरा अब भी बहुत अधिक सम्मान करते हैं| अपने अहंकार के कारण उन्होंने जीवन में अनेक श्रेष्ठों का अनादर किया, इस कारण उनके परिवार के लोग भी उनसे दूर हो गए| कई बार कर्मों का फल बहुत शीघ्र मिल जाता है| एक दिन ऐसी भी स्थिति आई कि लक्ष्मी जी उनसे रूठ कर उनसे बहुत दूर चली गयी और वे पराश्रित हो गए| अत्यधिक अभिमान भी व्यक्ति को खाई-खड्डे में डाल सकता है, यह सीख मैनें उनके जीवन से ली| उनकी सहन शक्ति असामान्य रूप से बड़ी प्रबल थी इसीलिए वे जीवित बचे, अन्यथा एक सामान्य व्यक्ति ऐसे आघात नहीं सह सकता और शीघ्र ही यमलोक पहुँच जाता है| मित्रता धर्म निभाने के लिए उनके कष्ट भरे जीवन में भी मैनें उनका कभी साथ नहीं छोड़ा| अब जीवन के संध्याकाल में वे अपनी भूलें मान रहे हैं|
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जब मनुष्य का अहंकार प्रबल हो जाता है तब क्रोध और घृणा भी उसके जीवन में आ जाती है| मेरा अनुभवजन्य विचार तो यही है कि हम स्वयं को यह देह मान लेते हैं और इसके सुख के लिए जीवन को दाँव पर लगा देते हैं, यह हमारे पतन का एक सबसे बड़ा कारण है| इस देह से परे भी जीवन है, यह बात बुद्धि से समझ में नहीं आती| इसके लिए भगवान से प्रेम और ध्यान साधना करनी पड़ती है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०९ अक्टूबर २०१७
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मेरे एक घनिष्ठ मित्र हैं जो बहुत अधिक धनी व्यक्ति थे| धन के नशे में अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं थे| हालाँकि उनमें सदगुण भी बहुत अधिक थे| बड़े परोपकारी, दानवीर, विद्वान् और राष्ट्रभक्त थे| पर अहंकार उनका बड़ा प्रबल था| पूर्वजन्म के कुछ संस्कारों के कारण ही मेरी उनसे मित्रता थी जिसे आप उनकी एक विवशता भी समझ सकते हैं| जिससे भी उन्होंने मित्रता की वे सब उनसे कुछ न कुछ अपेक्षा ही रखते थे, लोगों ने उन्हें बहुत अधिक ठगा| पर मेरी उनसे कभी भी कोई अपेक्षा नहीं रही, इस कारण वे मेरा अब भी बहुत अधिक सम्मान करते हैं| अपने अहंकार के कारण उन्होंने जीवन में अनेक श्रेष्ठों का अनादर किया, इस कारण उनके परिवार के लोग भी उनसे दूर हो गए| कई बार कर्मों का फल बहुत शीघ्र मिल जाता है| एक दिन ऐसी भी स्थिति आई कि लक्ष्मी जी उनसे रूठ कर उनसे बहुत दूर चली गयी और वे पराश्रित हो गए| अत्यधिक अभिमान भी व्यक्ति को खाई-खड्डे में डाल सकता है, यह सीख मैनें उनके जीवन से ली| उनकी सहन शक्ति असामान्य रूप से बड़ी प्रबल थी इसीलिए वे जीवित बचे, अन्यथा एक सामान्य व्यक्ति ऐसे आघात नहीं सह सकता और शीघ्र ही यमलोक पहुँच जाता है| मित्रता धर्म निभाने के लिए उनके कष्ट भरे जीवन में भी मैनें उनका कभी साथ नहीं छोड़ा| अब जीवन के संध्याकाल में वे अपनी भूलें मान रहे हैं|
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जब मनुष्य का अहंकार प्रबल हो जाता है तब क्रोध और घृणा भी उसके जीवन में आ जाती है| मेरा अनुभवजन्य विचार तो यही है कि हम स्वयं को यह देह मान लेते हैं और इसके सुख के लिए जीवन को दाँव पर लगा देते हैं, यह हमारे पतन का एक सबसे बड़ा कारण है| इस देह से परे भी जीवन है, यह बात बुद्धि से समझ में नहीं आती| इसके लिए भगवान से प्रेम और ध्यान साधना करनी पड़ती है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०९ अक्टूबर २०१७
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