Monday, 9 October 2017

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है .....

सुना और पढ़ा है कि प्राचीन भारत में घर घर में यज्ञशालाएँ होती थीं| आजकल शायद ही किसी घर में यज्ञशाला मिले|

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है .....

गाँवों में शौचालय तो अपने जीवन में कहीं भी मैनें नहीं देखे| यह नगरों की आवश्यकता थी| गाँवों में लोग खेत में ही मल-मूत्र त्याग कर उस पर मिट्टी डाल दिया करते थे| इससे खाद बनती थी| अब जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ गयी है और भूमि भी कम पड़ने लगी है इसलिए गाँवों में भी शौचालय आवश्यक हो गए हैं|

आजकल गाँवों में लोग खेती से विमुख होने होने लगे हैं| नरेगा जैसी योजनाओं से लोगों में परिश्रम करने की भावना समाप्त होने लगी है| कृषि मजदूर नहीं मिलते है| अनेक लोग ताश खेल खेल कर समय काटते हैं| खेती के लिए बैंक से ऋण लेते हैं पर खेती करते नहीं हैं| फिर फसल नहीं हुई कहकर आन्दोलन कर के ऋण माफ़ करा लेते हैं| पहले बिचौलिए आधा पैसा खा जाते थे, अब खाते में पैसा सीधा आ जाता है| कहते हैं कि खूब प्रगति हो रही है|

आज से चालीस-पचास वर्षों पूर्व तक चाय की आदत लोगों में नहीं थी| अब चाय के बिना काम ही नहीं चलता|

पानी की बिक्री पहले कभी नहीं होती थी| लोग प्यासे को पानी पिलाना अपना धर्म मानते थे|

सुना और पढ़ा है कि प्राचीन भारत में दूध इतना अधिक होता था कि लोग दूध बेचना अपना अपमान समझते थे| अब दुग्ध उद्योग सबसे अधिक लाभकारी है|

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है| बीता हुआ युग कभी बापस नहीं आता| जो हो रहा है वह समय के अनुसार अच्छा ही हो रहा है, क्योंकि हम मूक साक्षीमात्र ही हैं| कोई शिकायत नहीं है| साक्षी मात्र बनकर ही देखते रहो|

क्या मनुष्य के दूषित विचारों से प्रदूषण नहीं फैलता ?
क्या निर्दोष पशुओं की क्रूर ह्त्या से प्रदूषण नहीं फैलता ?
क्या एयर कंडीशनर चलाने से प्रदूषण नहीं फैलता ?
क्या कारखानों के धुएँ से प्रदूषण नहीं फैलता ?
क्या सडकों पर चल रहे इतने सारे वाहन प्रदूषण नहीं फैलाते?

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!

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