पंचप्राण, दशमहाविद्या और भगवती माँ छिन्नमस्ता ......
.
बहुत वर्षों पहिले की बात है, अंग्रेजी में "छिन्नमस्ता" नामक एक पुस्तक संयोग से पढने को मिली जिसे भारत में मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन ने छापा था| उस पुस्तक की लेखिका एक अमेरिकी विदुषी महिला थी जिसने कई वर्षों तक भगवती छिन्नमस्ता पर खूब शोध कार्य कर के वह पुस्तक लिखी थी| वह पुस्तक उस समय मुझे बहुत अच्छी लगी और मुझ में भी माँ छिन्नमस्ता की भक्ति और लगन जग उठी| मैनें ढूंढ ढूंढ कर पूरे भारत में माँ छिन्नमस्ता पर जितना भी साहित्य मिल सकता था उस का संकलन और अध्ययन किया| पर उस से संतुष्टि नहीं मिली और भगवती छिन्नमस्ता के किसी सिद्ध साधक की खोज आरम्भ की, पर कहीं भी कोई सिद्ध साधक नहीं मिला| एक सिद्ध तंत्र साधक मिले, उन्होंने बड़ी ईमानदारी से स्पष्ट बता दिया कि उनका माँ छिन्नमस्ता की महाविद्या में कोई अधिकार नहीं है| फिर मैं माँ छिन्नमस्ता का विग्रह सामने रखकर प्रातःकाल उठते ही कमलगट्टे की माला से गुरुमंत्र के साथ साथ भगवती छिन्नमस्ता के मन्त्र का भी जाप करने लगा| यह क्रम लम्बे समय तक चला|
फिर सब तरह के नाम-रूपों से परे वेदान्त की साधना में रूचि जागृत होने पर सब नाम-रूप छूट गए|
.
मुझे भगवती छिन्नमस्ता का विग्रह बहुत ही अच्छा लगता है| उन्होंने अपने पैरों के नीचे कामदेव और उनकी पत्नी रति को पटक रखा है और उन पर खड़ी होकर नृत्य कर रही हैं| यह एक स्पष्ट सन्देश है कि जो काम वासनाओं पर विजय प्राप्त न कर सके वह मेरी साधना का अधिकारी नहीं है| फिर अपना ही मस्तक काट कर अपने ही धड़ से निकलती हुई रक्त की मुख्य धारा का पान कर रही हैं| यह अहंकार का नाश, पूर्ण समर्पण, वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धि का प्रतीक है| रक्त की दो धाराओं का पान उनके साथ खड़ी उनकी दो सखियाँ कर रही हैं| वे भी अपने आप में महाशक्तियाँ हैं| रक्त की तीन धाराएँ इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना की प्रतीक हैं| भगवती के इस रूप की विधिवत् साधना से परम वैराग्य और योग की उच्चतम सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं|
.
पंचप्राणों के पांच सौम्य और पाँच उग्र रूप दशमहाविद्याएँ हैं|
भगवान गणेश को हम गणेश, गणपति और गणनायक आदि कहते हैं| पर वे गण कौन से हैं जिन के वे नायक हैं? पंचप्राण (प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान) ही गणेश जी के गण है|
.
अभी इतना ही बहुत अधिक है| आप सब को शुभ कामनाएँ| जिन्हें वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धियाँ चाहियें उन्हें भगवती माँ छिन्नमस्ता की उपासना करनी चाहिए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
३ अक्तूबर २०१७
.
बहुत वर्षों पहिले की बात है, अंग्रेजी में "छिन्नमस्ता" नामक एक पुस्तक संयोग से पढने को मिली जिसे भारत में मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन ने छापा था| उस पुस्तक की लेखिका एक अमेरिकी विदुषी महिला थी जिसने कई वर्षों तक भगवती छिन्नमस्ता पर खूब शोध कार्य कर के वह पुस्तक लिखी थी| वह पुस्तक उस समय मुझे बहुत अच्छी लगी और मुझ में भी माँ छिन्नमस्ता की भक्ति और लगन जग उठी| मैनें ढूंढ ढूंढ कर पूरे भारत में माँ छिन्नमस्ता पर जितना भी साहित्य मिल सकता था उस का संकलन और अध्ययन किया| पर उस से संतुष्टि नहीं मिली और भगवती छिन्नमस्ता के किसी सिद्ध साधक की खोज आरम्भ की, पर कहीं भी कोई सिद्ध साधक नहीं मिला| एक सिद्ध तंत्र साधक मिले, उन्होंने बड़ी ईमानदारी से स्पष्ट बता दिया कि उनका माँ छिन्नमस्ता की महाविद्या में कोई अधिकार नहीं है| फिर मैं माँ छिन्नमस्ता का विग्रह सामने रखकर प्रातःकाल उठते ही कमलगट्टे की माला से गुरुमंत्र के साथ साथ भगवती छिन्नमस्ता के मन्त्र का भी जाप करने लगा| यह क्रम लम्बे समय तक चला|
फिर सब तरह के नाम-रूपों से परे वेदान्त की साधना में रूचि जागृत होने पर सब नाम-रूप छूट गए|
.
मुझे भगवती छिन्नमस्ता का विग्रह बहुत ही अच्छा लगता है| उन्होंने अपने पैरों के नीचे कामदेव और उनकी पत्नी रति को पटक रखा है और उन पर खड़ी होकर नृत्य कर रही हैं| यह एक स्पष्ट सन्देश है कि जो काम वासनाओं पर विजय प्राप्त न कर सके वह मेरी साधना का अधिकारी नहीं है| फिर अपना ही मस्तक काट कर अपने ही धड़ से निकलती हुई रक्त की मुख्य धारा का पान कर रही हैं| यह अहंकार का नाश, पूर्ण समर्पण, वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धि का प्रतीक है| रक्त की दो धाराओं का पान उनके साथ खड़ी उनकी दो सखियाँ कर रही हैं| वे भी अपने आप में महाशक्तियाँ हैं| रक्त की तीन धाराएँ इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना की प्रतीक हैं| भगवती के इस रूप की विधिवत् साधना से परम वैराग्य और योग की उच्चतम सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं|
.
पंचप्राणों के पांच सौम्य और पाँच उग्र रूप दशमहाविद्याएँ हैं|
भगवान गणेश को हम गणेश, गणपति और गणनायक आदि कहते हैं| पर वे गण कौन से हैं जिन के वे नायक हैं? पंचप्राण (प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान) ही गणेश जी के गण है|
.
अभी इतना ही बहुत अधिक है| आप सब को शुभ कामनाएँ| जिन्हें वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धियाँ चाहियें उन्हें भगवती माँ छिन्नमस्ता की उपासना करनी चाहिए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
३ अक्तूबर २०१७
No comments:
Post a Comment