Friday, 6 October 2017

समस्याएँ मन में हैं या परिस्थितियों में ......

समस्याएँ मन में हैं या परिस्थितियों में ......

इस विषय पर बड़े बड़े मनीषियों और मनोवैज्ञानिकों ने बहुत अधिक लेख लिखे हैं पर उनका कोई प्रभाव सामान्य व्यक्ति पर आज तक नहीं पड़ा है|

जब भी कोई समस्या आती है तब हम सब परिस्थितियों को ही दोष देते हैं| हजारों में से कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है जो परिस्थितियों से ऊपर उठ पाता है| बाकी सब तो परिस्थितियों के ही शिकार हो जाते हैं|

आदर्श तो यह है कि हम परमात्मा में आस्था रखते हुए हर परिस्थिति का सामना करें| जो होना है सो तो होगा ही, पर भगवान ने जो साहस और मनोबल दिया है, उसका प्रयोग तो कर के देखें|
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दुखी व्यक्ति को सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर भी सदा से ही बहुत अधिक ठगी होती आई है| यह प्राचीन काल में भी थी और अब भी है| भगवान ने हमें विवेक दिया है, उस विवेक का उपयोग करें| जहाँ भी समझ में आये कि सामने वाला व्यक्ति झूठा है तो उसे विष की तरह त्याग दें|

अपनी पीड़ा सिर्फ भगवान को अकेले में कहें, दुनियाँ के आगे रोने से कोई लाभ नहीं है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

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