आध्यात्मिक साधना में हम प्रगति कर रहे हैं या अवनति :---
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स्वयं को धोखे में नहीं रखना चाहिए| महात्मा लोग साधक की तुरंत पहिचान कर लेते हैं| हम उन्हें अपने शब्दजाल से धोखा नहीं दे सकते| हमें भी चाहिए कि हम स्वयं की समय समय पर जाँच करते रहें और अपना स्वयं का मुल्यांकन भी कर लें| अनेक आचार्यों ने इस विषय पर खूब प्रकाश डाला है| नीचे दिए गए मापदंडों से हम अपना स्वयं का मूल्यांकन कर सकते हैं .....
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(१) सबसे पहला मापदंड है .... आहार और वाणी पर नियंत्रण| अधिक बोलने वाला और अधिक खाने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता| यदि हमारे में ये अवगुण हैं तो हम निश्चित रूप से कोई प्रगति नहीं कर रहे हैं|
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(२) दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना का न होना, यह दूसरा मापदंड है| धर्मरक्षा के लिए क्षत्रिय जाति युद्ध में शत्रुओं का बध कर देती थी पर अपने स्वयं के मन में कभी भी उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं आने देती थी| यदि बारबार हमारे मन में दूसरों के प्रति बुरे विचार आते हैं तो हमें तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए| यह हमारी अवनति की निशानी है|
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(३) प्रमाद और दीर्घसूत्रता का अभाव, यह तीसरा मापदंड है| प्रमाद का अर्थ होता है आलस्य, और दीर्घसूत्रता का अर्थ है आवश्यक कार्य को सदा आगे के लिए टालना| यदि हमारे में ये दुर्गुण हैं तो इनसे मुक्त हों| ये भी हमारी अवनति ही दिखाते हैं|
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(४) साँस की गति का सामान्य से अधिक न होना, यह चौथा मापदंड है| साधनाकाल में साधक के साँसों की गति बहुत कम होती है| साँस का तेज चलना अच्छा लक्षण नहीं है, यह दिखाता है कि साधना में हमने कोई प्रगति नहीं की है|
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(५) हमारे में कितनी जागरूकता और संवेदनशीलता है, इस से भी हम स्वयं की जाँच कर सकते हैं| धीरे हमारी इच्छाएँ भी कम होते होते समाप्त हो जाती हैं| बार बार इच्छाओं का जागृत होना भी हमारी अवनति है|
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(६) हम जीवन में दुःखी हैं तो यह हमारी अवनति की सबसे बड़ी निशानी है| दुःख एक अभिशाप और सबसे बड़ी पीड़ा है| यदि हम दुःखी हैं तो वास्तव में नर्क में हैं| कैसे भी इस स्थिति से बाहर निकलें| भगवान का भक्त साधक कभी दुःखी नहीं हो सकता| वह हर हाल में प्रसन्न रहता है|
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उपरोक्त मापदंडों से हम अपनी स्वयं की जांच कर सकते हैं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं या अवनति |
सभी को धन्यवाद और नमन !
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स्वयं को धोखे में नहीं रखना चाहिए| महात्मा लोग साधक की तुरंत पहिचान कर लेते हैं| हम उन्हें अपने शब्दजाल से धोखा नहीं दे सकते| हमें भी चाहिए कि हम स्वयं की समय समय पर जाँच करते रहें और अपना स्वयं का मुल्यांकन भी कर लें| अनेक आचार्यों ने इस विषय पर खूब प्रकाश डाला है| नीचे दिए गए मापदंडों से हम अपना स्वयं का मूल्यांकन कर सकते हैं .....
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(१) सबसे पहला मापदंड है .... आहार और वाणी पर नियंत्रण| अधिक बोलने वाला और अधिक खाने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता| यदि हमारे में ये अवगुण हैं तो हम निश्चित रूप से कोई प्रगति नहीं कर रहे हैं|
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(२) दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना का न होना, यह दूसरा मापदंड है| धर्मरक्षा के लिए क्षत्रिय जाति युद्ध में शत्रुओं का बध कर देती थी पर अपने स्वयं के मन में कभी भी उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं आने देती थी| यदि बारबार हमारे मन में दूसरों के प्रति बुरे विचार आते हैं तो हमें तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए| यह हमारी अवनति की निशानी है|
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(३) प्रमाद और दीर्घसूत्रता का अभाव, यह तीसरा मापदंड है| प्रमाद का अर्थ होता है आलस्य, और दीर्घसूत्रता का अर्थ है आवश्यक कार्य को सदा आगे के लिए टालना| यदि हमारे में ये दुर्गुण हैं तो इनसे मुक्त हों| ये भी हमारी अवनति ही दिखाते हैं|
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(४) साँस की गति का सामान्य से अधिक न होना, यह चौथा मापदंड है| साधनाकाल में साधक के साँसों की गति बहुत कम होती है| साँस का तेज चलना अच्छा लक्षण नहीं है, यह दिखाता है कि साधना में हमने कोई प्रगति नहीं की है|
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(५) हमारे में कितनी जागरूकता और संवेदनशीलता है, इस से भी हम स्वयं की जाँच कर सकते हैं| धीरे हमारी इच्छाएँ भी कम होते होते समाप्त हो जाती हैं| बार बार इच्छाओं का जागृत होना भी हमारी अवनति है|
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(६) हम जीवन में दुःखी हैं तो यह हमारी अवनति की सबसे बड़ी निशानी है| दुःख एक अभिशाप और सबसे बड़ी पीड़ा है| यदि हम दुःखी हैं तो वास्तव में नर्क में हैं| कैसे भी इस स्थिति से बाहर निकलें| भगवान का भक्त साधक कभी दुःखी नहीं हो सकता| वह हर हाल में प्रसन्न रहता है|
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उपरोक्त मापदंडों से हम अपनी स्वयं की जांच कर सकते हैं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं या अवनति |
सभी को धन्यवाद और नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१ अगस्त २०१७.
१ अगस्त २०१७.
नाग को धारण व हलाहल का पान वही कर सकता है जो तांडव की क्षमता रखता है, अन्यथा विषधर कब कब क्या कर ले कोई नहीं जानता |
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