बिना श्रद्धा के की गई कोई भी साधना निष्फल होती है। वह समय को नष्ट करना है। हमारी श्रद्धा सात्विक है या राजसिक या तामसिक, इनके भी अलग-अलग फल है। श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय "श्रद्धात्रय विभाग योग" में इसका स्पष्ट निर्देश है। जिस साधना में श्रद्धा नहीं है वह भूल कर भी नहीं करनी चाहिए। उससे कुछ भी नहीं मिलेगा। परमात्मा (और जगन्माता) के जिस भी रूप में आपकी श्रद्धा है, उसी की साधना करनी चाहिए। गीता के अनुसार जो यज्ञ, दान, तप और कर्म अश्रद्धापूर्वक किया जाता है, वह 'असत्' कहा जाता है; वह न तो इस लोक में, और न ही मृत्यु के पश्चात (उस लोक में) लाभदायक होता है।
Tuesday, 4 November 2025
बिना श्रद्धा के की गई कोई भी साधना निष्फल होती है ---
जिन की वेदान्त में रुचि है वे स्वामी रामतीर्थ के उपलब्ध साहित्य को अवश्य पढ़ें ---
लगभग पच्चीस-तीस वर्षों पूर्व वेदान्त के शिखर पुरुष स्वामी रामतीर्थ के लेखों का संग्रह "In woods of God-realization" (आठ खंडों में) पढ़ा था। उस समय मेरी सम्पूर्ण चेतना में वेदान्त ही वेदान्त छा गया था। स्वामी रामतीर्थ के सारे प्रवचन १८वीं शताब्दी में बोली जाने वाली अङ्ग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध हैं, जिनका संकलन उनके मित्र सरदार पूरण सिंह ने किया था। बाद में लखनऊ के स्वामी रामतीर्थ प्रतिष्ठान ने उनका हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध करवाया था, जो सौलह छोटी पुस्तकों के रूप में उपलब्ध था। अपने स्वयं के हाथों से लिखे गए साहित्य को तो उन्होंने अमेरिका से बापस आते समय समुद्र में, और उत्तराखंड में स्वयं के हाथों से लिखे गए साहित्य को गंगा जी में प्रवाहित कर दिया था। उनका जो भी साहित्य उपलब्ध है वह उनके मित्रों द्वारा संग्रहित है।
भौतिक देहों में सुख ढूँढने वाला व्यक्ति परमात्मा को कभी भी किसी भी परिस्थिति में प्राप्त नहीं कर सकता ---
भौतिक देहों में सुख ढूँढने वाला व्यक्ति परमात्मा को कभी भी किसी भी परिस्थिति में प्राप्त नहीं कर सकता ---
हमारे मन में छिपी विषयासक्ति ही हमारे सारे संतापों का कारण है ---
हमारे मन में छिपी विषयासक्ति ही हमारे सारे संतापों का कारण है। इसके निवारण के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में दो उपाय बतलाए हैं -- अभ्यास और वैराग्य। विवेक विचार से उत्पन्न हुआ स्वभाविक वैराग्य हमें परमात्मा की ओर ले जाता है, और निराशा व दुःख से उत्पन्न हुआ वैराग्य हमें बापस संसार में ले आता है। अतः अभ्यास करते रहें। दुःख से उत्पन्न हुए वैराग्य की ओर ध्यान न दें। अपना मन केवल भगवान में ही लगायें। आगे के सारे द्वार खुल जायेंगे। निःस्पृह होना भी वैराग्य है।
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"हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम !!" ---
"हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिः नाम !!" ---
मेरी साधना ---
साधना --- मेरा लक्ष्य केवल आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति है। जो भी कार्य मेरे माध्यम से हो रहा है, वह केवल परमात्मा ही कर रहे हैं। मेरा हरेक विचार व हरेक भाव केवल उन्हीं का है। ध्यान-साधना से अनुभूतिजन्य प्राप्त ज्ञान ही मेरा वास्तविक ज्ञान है, अन्य सब परमात्मा से प्राप्त मार्गदर्शन है। मेरी भक्ति (परमप्रेम और अनुराग) केवल परमात्मा के लिये है। जो भी साधना मेरे माध्यम से होती है, उसके कर्ता स्वयं परमात्मा हैं। जब मैं एकांत में होता हूँ तब मुझे केवल उन्हीं का प्रकाश दिखायी देता है, और उन्हीं की पवित्र ध्वनि सुनायी देती है। यही मेरी साधना है और यही मेरा जीवन है।
. जिस भी क्षण अपनी गहनतम चेतना में परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति हो, साधना के लिये वही सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। साधना का एकमात्र उद्देश्य पूर्ण समर्पण के द्वारा परमात्मा के प्रति परम-अनुराग यानि परम-प्रेम को व्यक्त करना है, अन्य कुछ भी नहीं। इस समय मेरी अंतःचेतना में केवल परमात्मा हैं, उनके अतिरिक्त मुझे कुछ भी नहीं पता। मुझे अपने जीवन में बहुत कम लोग ऐसे मिले हैं, जिन्हें परमात्मा से परमप्रेम है, अन्य सब तो परमात्मा के साथ व्यापार ही कर रहे हैं। अब तो मुझे सभी में परमात्मा के दर्शन होते हैं, अतः कोई अंतर नहीं पड़ता।
एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ---
एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ---
आध्यात्मिक साधना परमात्मा से "कुछ प्राप्ति" के लिए नहीं, परमात्मा को अपने सर्वस्व के पूर्ण समर्पण, और परमात्मा के साथ एक होने हेतु होती है --- .
आध्यात्मिक साधना परमात्मा से "कुछ प्राप्ति" के लिए नहीं, परमात्मा को अपने सर्वस्व के पूर्ण समर्पण, और परमात्मा के साथ एक होने हेतु होती है ---
परमात्मा को अपनी पूर्ण निष्ठा से वचन दें कि हम उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं ---
परमात्मा को अपनी पूर्ण निष्ठा से वचन दें कि हम उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं ---
पूर्वाञ्चल के लोग छठ पूजा अवश्य मनाते हैं ---
छठ पूजा -- पहिले केवल पूर्वाञ्चल (बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर-प्रदेश) के लोगों के साथ ही पहिचानी जाती थी, अब पूरे भारत में इसे लोग जानते हैं। इसका कारण है कि पूर्वाञ्चल के लोग पूरे भारत में कार्यरत हैं। वे अपनी सांस्कृतिक पहिचान के प्रति पूर्ण सजग हैं। वे कहीं भी हों, छठ महापर्व को अवश्य मनाते हैं।
आध्यात्मिक साधना द्वारा हमारे ऊपर परमात्मा की पूर्ण कृपा कैसे हो ? --
आध्यात्मिक साधना द्वारा हमारे ऊपर परमात्मा की पूर्ण कृपा कैसे हो ? ---
हमारा जीवन अशांत क्यों है? ---
(प्रश्न) : हमारा जीवन अशांत क्यों है?
मेरी नौका के एकमात्र कर्णधार वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण हैं, वे स्वयं ही यह नौका हैं, और वे ही यह "मैं" बन गए हैं ---
मैं इस समय किनारे पर बैठा हुआ, आने वाले समय के लिए पूरी तरह तैयार हूँ। स्वयं को छोड़कर किसी भी अन्य पर कोई भरोसा नहीं रहा है। मेरी नौका के एकमात्र कर्णधार वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण हैं, वे स्वयं ही यह नौका हैं, और वे ही यह "मैं" बन गए हैं। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह भी वे ही हैं। अन्य सब मिथ्या है।
७ नवंबर १९१७ से पेत्रोग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग ) में आरंभ हुई बोल्शेविक क्रांति को ७ नवंबर २०२५ को १०८ वर्ष हो जायेंगे ---
७ नवंबर १९१७ से पेत्रोग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग ) में आरंभ हुई बोल्शेविक क्रांति को ७ नवंबर २०२५ को १०८ वर्ष हो जायेंगे। यह विश्व की एक अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसके पश्चात मार्क्सवादी (साम्यवादी) शासनों की स्थापना का क्रम आरंभ हुआ। ५८ वर्ष पूर्व 7 नवंबर १९६७ को इस क्रांति की ५०वीं वर्षगांठ पर मैं रूस में मनाए जा रहे उत्सवों का साक्षी था।
हृदय में परमात्मा से प्रेम के बिना हम सब एक नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं --- .
हृदय में परमात्मा से प्रेम के बिना हम सब एक नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं ---
Monday, 3 November 2025
हे राम, आपके बिना हम नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं ......
हे राम, आपके बिना हम नाक कटी हुई सुन्दर नारी की तरह हैं ......