Saturday, 28 June 2025

"अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥"

 "अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥"

अब इस संसार से मन तृप्त हो गया है, और कुछ भी नहीं चाहिये। सप्ताह में सातों दिन, दिन में चौबीस घंटे, हर क्षण चेतना परमात्मा से जुड़ी रहे और परमात्मा का स्मरण करते हुए उन्हीं में विलीन हो जाये। परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई विचार भी मन में नहीं आये।
इस संसार के अनुभव अच्छे नहीं थे। दुबारा इधर मुड़कर देखने की भी इच्छा नहीं है।
ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२४ जून २०२५
अब इस संसार से मन तृप्त हो गया है, और कुछ भी नहीं चाहिये। सप्ताह में सातों दिन, दिन में चौबीस घंटे, हर क्षण चेतना परमात्मा से जुड़ी रहे और परमात्मा का स्मरण करते हुए उन्हीं में विलीन हो जाये। परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई विचार भी मन में नहीं आये।
इस संसार के अनुभव अच्छे नहीं थे। दुबारा इधर मुड़कर देखने की भी इच्छा नहीं है।
ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२४ जून २०२५

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