भगवान यदि मुझसे प्रसन्न नहीं हैं तो कोई दूसरा भक्त ढूंढ़ लें। इससे अधिक भक्ति और समर्पण मेरे द्वारा संभव नहीं है। यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं।
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पुनश्च : --- सारी सृष्टि कृष्णमय है। वे ही यह विश्व बन गए हैं। कोई अन्य है ही नहीं। मेरे कारण किसी भी प्राणी को कोई कष्ट नहीं हो। मेरे रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
मेरी प्रथम, अंतिम और एकमात्र प्रार्थना यही है कि "धर्म की जय हो और अधर्म का नाश हो"। जीवन और मृत्यु दोनों में मेरी चेतना परमात्मा के साथ एक रहे। इसके अतिरिक्त मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए।
पुनश्च: --- मेरी किसी भी कमी के लिए भगवान स्वयं ही जिम्मेदार हैं, मैं नहीं। मेरी हर कमी उन की ही कमी है, और मेरा हर गुण उनका ही गुण है। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२५
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