हमारी प्रज्ञा, परमात्मा में प्रतिष्ठित हो, हमारी हर क्रिया से उन के प्रकाश का निरंतर विस्तार हो। यह हमारा स्वधर्म है। ॐ स्वस्ति !!
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हमारा लक्ष्य उच्चतम हो। हमारे भावों में पवित्रता हो। हर परिस्थिति में हम विजयी होंगे। हमारी रक्षा धर्म ने की है, और धर्म ही हमारी रक्षा करेगा। किसी भी परिस्थिति में हम अपना स्वधर्म न छोड़ें। गीता में भगवान का वचन है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
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"ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै॥" ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
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"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्॥"
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
कृपा शंकर
१७ मार्च २०२४
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