Monday, 24 February 2025

परमात्मा के सारे रूप ही मेरे धन हैं, जिन्हें न तो कोई मुझसे चुरा सकता है, न डाका डाल सकता है, और न कोई ठग मुझसे ठग सकता है।

 परमात्मा के सारे रूप ही मेरे धन हैं, जिन्हें न तो कोई मुझसे चुरा सकता है, न डाका डाल सकता है, और न कोई ठग मुझसे ठग सकता है। उच्चतम स्तर पर तो ऐसी अनेक अनुभूतियाँ हैं, जिन्हें सिर्फ अनुभूत ही किया जा सकता है, वे व्यक्त नहीं हो सकतीं। कुछ हैं जिन्हें चित्रों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। भगवान पिता भी हैं, और माता भी। वे ही मित्र रूप में अपने ही शत्रु रूपों का संहार करते हैं, वे ही सारे संबंधी और मित्र हैं। चाहे उनके किसी रूप से संबंध-विच्छेद कर लो, चाहे युद्धभूमि में उनका वध करो, लेकिन मन में घृणा और द्वेष न हो। कर्ता सिर्फ परमात्मा ही हैं। हमारे मन का लोभ और अहंकार ही हमें उनसे दूर करता है। अहंभाव से मुक्त होकर यदि हम राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए इस लोक का भी नाश कर देते हैं तो कोई पाप हमें नहीं लगेगा। गीता में भगवान कहते हैं --

"यस्य नाहङ्कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते॥१८:१७॥"
अर्थात् - जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है, और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मरता है और न (पाप से) बँधता है॥
भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ जुलाई २०२२
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"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् , पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात्।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् , कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि॥

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