कोई माने या न माने, कुछ सत्य सनातन नियम हैं जो सनातन हिन्दू धर्म के नाम से जाने जाते हैं....
"हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं| आत्मा कभी नष्ट नहीं होती| हमारी सोच और विचार ही हमारे कर्म हैं जिन का फल भोगने को हम बाध्य हैं| उन कर्मफलों को भोगने के लिए ही बार बार हमें जन्म लेना पड़ता है| ईश्वर करुणा और प्रेमवश हमारे कल्याण हेतु अवतार लेते हैं| जीवभाव से मुक्त हो कर परमात्मा में शरणागति व समर्पण हमें इस जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं| यह सृष्टि परमात्मा का एक संकल्प है| परमात्मा की प्रकृति अपनी सृष्टि के संचालन का हर कार्य अपने नियमों के अनुसार करती है| उन नियमों को न जानना हमारा अज्ञान है| परमात्मा से परमप्रेम ही भक्ति है जिस की परिणिती ज्ञान है|"
सरलतम भाषा में यह ही हमारे सनातन हिन्दू धर्म का सार है, बाकी सब इसी का विस्तार है| जो मनुष्य इस में आस्था रखते हैं, वे स्वतः ही हिन्दू हैं, चाहे वे किसी भी देश के नागरिक हैं, इस पृथ्वी पर कहीं भी रहते हैं, व किसी भी मनुष्य जाति में किसी भी देश में उन्होने जन्म लिया हो|
हमारे हृदय में परमप्रेम और अभीप्सा हो तो परमात्मा निश्चित रूप से हमारे माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं| परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है जिसे पाने के लिए वे भी भूखे हैं, वह है हमारा प्रेम| हम परमात्मा को अपने प्रेम के सिवाय अन्य दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उन्हीं का है| उन्होने हमें पूरी छूट दे रखी है, वे हमारे निजी जीवन में दखल नहीं देते, चाहे हम उन्हें मानें या न मानें| हमारी मान्यता से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता| प्रकृति तो अपने नियमों के अनुसार ही कार्य करती रहेगी|
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सप्रेम सादर नमन| श्रीहरिः||
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१४ फरवरी २०२०
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१४ फरवरी २०२०
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