समाज में निराशा और कुंठा फैलाने का किसी को अधिकार नहीं है| निराश सिपाही किसी काम का नहीं होता| जीवन में कभी निराश न हों और एक निमित्त मात्र बन कर अपने कर्तव्य का पालन करते रहें| भगवान कहते हैं .....
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च| मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्||८:७||"
"इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो| मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे||"
.
भगवान इस से आगे यह भी कहते हैं .....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्|
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्||११:३३||"
इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो| ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं| हे सव्यसाचिन्! तुम केवल निमित्त ही बनो||
.
हमारे माध्यम से कर्ता तो भगवान स्वयं हैं, हम तो उनके उपकरण मात्र हैं| उन्हें हृदय में रखकर जीवन का हरेक कार्य करें|
.
"प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥"
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च| मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्||८:७||"
"इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो| मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे||"
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भगवान इस से आगे यह भी कहते हैं .....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्|
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्||११:३३||"
इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो| ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं| हे सव्यसाचिन्! तुम केवल निमित्त ही बनो||
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हमारे माध्यम से कर्ता तो भगवान स्वयं हैं, हम तो उनके उपकरण मात्र हैं| उन्हें हृदय में रखकर जीवन का हरेक कार्य करें|
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"प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥"
आप सब को शुभ कामनायें और नमन | हरिः ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२०
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२०
हर एक युद्ध मे दो ही परिणाम होते हैं ..... हार या जीत|
ReplyDeleteहार का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति को छोड़कर हल्के तिनकों की तरह आंधी में बिखर जाएँ और स्वयं के समाज व धर्म की बुरी तरह निंदा कर स्वयं की दृष्टि में ही गिर जाएँ| आत्मनिंदा कर के हम बिखरेंगे नहीं| हम धर्मक्षेत्र में डटे रहकर विजयी होंगे| भारत विजयी होगा, हम विजयी होंगे|
ॐ तत्सत् |