Thursday, 1 August 2019

भवसागर पता नहीं कब का पार हो गया ! कुछ पता ही नहीं चला ----

भवसागर पता नहीं कब का पार हो गया ! कुछ पता ही नहीं चला.
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एक निर्जन, अनंत अन्धकार से घिरे प्रचंड चक्रवातों से ग्रस्त भयावह भवसागर को पार करने के लिए, जहाँ कोई तारा भी दृष्टिगत नहीं हो रहा था, वहाँ भगवान ने यह देह रुपी टूटी-फूटी असंख्य छिद्रों वाली नौका दी थी| सद्गुरु महाराज ने इसका कर्णधार बनने की बड़ी कृपा की और भगवान की अनुग्रह रूपी अनुकूलता मिली| सारे छिद्रों को भगवान ने भर दिया और जब ठीक से देखा तो पता चला कि भवसागर तो कभी का पार हो गया है, कुछ पता ही नहीं चला|
हे सच्चिदानंद हरिः, तुम कितने सुन्दर हो ! हे हरिः सुन्दर हे हरिः सुन्दर !

1 comment:

  1. इस भव-सागर में अमृत और विष दोनों साथ-साथ हैं| मंथन का अधिकार प्रभु ने हम को ही दिया है| हम विषपान करें या अमृतपान .... यह हमारी ही स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर है| प्रकृति हमें उसी के अनुसार फल देती है| प्रभु ने हमें विवेक भी दिया है ताकि हम उचित निर्णय ले सकें|
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    तेरे फूलों से भी प्यार तेरे काँटों से भी प्यार
    जो भी देना चाहे दे दे करतार ओ दुनिया के तारन हार
    तेरे फूलों से भी प्यार ......
    चाहे सुख दे या गम उनमें रह लेंगे हम
    चाहे हँसी भरा संसार या दे आँसुओं की धार
    जो भी देना चाहे दे दे करतार ओ दुनिया के तारन हार
    तेरे फूलों से भी प्यार .......
    चाहे हमें लगा दे पार चाहे डूबा दे मंझधार
    जो भी देना चाहे दे दे करतार ओ दुनिया के तारन हार
    तेरे फूलों से भी प्यार ......

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