नित्यमुक्त को जाने की आज्ञा कौन दे? परमशिव स्वेच्छा से अविद्या का आनंद लेने स्वतंत्र बंधनों में आये हैं. वे परतंत्र नहीं हैं.
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जब उन की कृपा से "इदम्" मिट जाता हैे, तब वे ही "अहम्" बन जाते हैं, और हमें अपने अच्युत अपरिछिन्न भाव की सिद्धि और अहम् व इदम् के भेद का ज्ञान होता है. हमारे बंधन स्वतंत्र हैं, परतंत्र नहीं. अंततः साधकत्व और मुमुक्षुत्व भी एक भ्रम ही है, क्योंकि स्वयं से पृथक कोई सत्ता है ही नहीं. कोई बद्धता भी नहीं है, क्योंकि हम तो हैं ही नहीं. जो भी है वे भगवान वासुदेव ही हैं. वे ही परमशिव है, वे ही पारब्रह्म हैं, वे ही जगन्माता हैं, वे ही सर्वस्व हैं.
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते |
वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ||गीता ७:१९||
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जब उन की कृपा से "इदम्" मिट जाता हैे, तब वे ही "अहम्" बन जाते हैं, और हमें अपने अच्युत अपरिछिन्न भाव की सिद्धि और अहम् व इदम् के भेद का ज्ञान होता है. हमारे बंधन स्वतंत्र हैं, परतंत्र नहीं. अंततः साधकत्व और मुमुक्षुत्व भी एक भ्रम ही है, क्योंकि स्वयं से पृथक कोई सत्ता है ही नहीं. कोई बद्धता भी नहीं है, क्योंकि हम तो हैं ही नहीं. जो भी है वे भगवान वासुदेव ही हैं. वे ही परमशिव है, वे ही पारब्रह्म हैं, वे ही जगन्माता हैं, वे ही सर्वस्व हैं.
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते |
वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ||गीता ७:१९||
साष्टांग दण्डवत उस परमतत्व को जो सभी का साक्षी है .....
ReplyDeleteस्वयं से बाहर प्राप्त करने योग्य कुछ भी नहीं है | कहीं कोई भेद नहीं है |
भगवान परमशिव की अनंतता का ध्यान करें | सारा अस्तित्व भगवान परमशिव का ही रूप है | वह अनंतता ही हम हैं | उस अनंतता का ही ध्यान करें | भगवान से प्रेम होगा तो मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा | स्वयं का बोध कराने वाली जो सत्ता है, वह ही परम सत्य है |
ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!