हमारा लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है, न कि कोई सिद्धांत विशेष, साधना पद्धति, मत-मतान्तर, पंथ, मज़हब या कोई वाद-विवाद ......
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हमारा प्रथम अंतिम और एकमात्र लक्ष्य है .... परमात्मा की प्राप्ति| वह कैसे हो इस का ही चिंतन करना चाहिए| हमें न तो किसी को खुश करना है और न किसी के पीछे पीछे भागना है, न भविष्य के लिए यह कार्य छोड़ना है, अगले जन्मों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं|
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महाभारत में युधिष्ठिर को यक्ष पूछता है ...
कः पन्था ? अर्थात् कौन सा मार्ग सर्वश्रेष्ठ है? युधिष्ठिर का उत्तर होता है ....
"तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्|
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः||"
अर्थात् ....
तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
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अतः हमें उन महापुरुषों का अनुकरण करना चाहिए जिन्होंने निज जीवन में परमात्मा को प्राप्त किया हो और उन की प्राप्ति का मार्ग बताया हो| साकार-निराकार, सगुण-निर्गुण .... इन सब में भेद करना मात्र अज्ञानता है| ये सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ ही हैं| इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| एक बालक चौथी कक्षा में पढ़ता है, और एक बालक बारहवीं में पढता है, सबकी अपनी अपनी समझ है| जो जिस भाषा और जिस स्तर पर पढता है उसे उसी भाषा और स्तर पर पढ़ाया जाता है| जिस तरह शिक्षा में क्रम होते हैं वैसे ही साधना और आध्यात्म में भी क्रम हैं| एक सद्गुरू आचार्य को पता होता है कि किसे क्या उपदेश और साधना देनी है, वह उसी के अनुसार शिष्य को शिक्षा देता है|
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मेरा इस देह में जन्म हुआ उससे पूर्व भी परमात्मा मेरे साथ थे, इस देह के पतन के उपरांत भी वे ही साथ रहेंगे| वे ही माता-पिता, भाई-बहिन, सभी सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में आये| यह उन्हीं का प्रेम था जो मुझे इन सब के रूप में मिला| वे ही मेरे एकमात्र सम्बन्धी और मित्र हैं| उनका साथ शाश्वत है|
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किसी भी तरह के वाद-विवाद में न पड़ कर अपना समय नष्ट न करें और उसका सदुपयोग परमात्मा के अपने प्रियतम रूप के ध्यान में लगाएँ| कमर को सीधी कर के बैठें भ्रूमध्य में ध्यान करें और एकाग्रचित्त होकर उस ध्वनी को सुनते रहें जो ब्रह्मांड की ध्वनी है| हम यह देह नहीं है, परमात्मा की अनंतता हैं| अपनी सर्वव्यापकता पर ध्यान करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१९
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हमारा प्रथम अंतिम और एकमात्र लक्ष्य है .... परमात्मा की प्राप्ति| वह कैसे हो इस का ही चिंतन करना चाहिए| हमें न तो किसी को खुश करना है और न किसी के पीछे पीछे भागना है, न भविष्य के लिए यह कार्य छोड़ना है, अगले जन्मों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं|
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महाभारत में युधिष्ठिर को यक्ष पूछता है ...
कः पन्था ? अर्थात् कौन सा मार्ग सर्वश्रेष्ठ है? युधिष्ठिर का उत्तर होता है ....
"तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्|
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः||"
अर्थात् ....
तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
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अतः हमें उन महापुरुषों का अनुकरण करना चाहिए जिन्होंने निज जीवन में परमात्मा को प्राप्त किया हो और उन की प्राप्ति का मार्ग बताया हो| साकार-निराकार, सगुण-निर्गुण .... इन सब में भेद करना मात्र अज्ञानता है| ये सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ ही हैं| इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| एक बालक चौथी कक्षा में पढ़ता है, और एक बालक बारहवीं में पढता है, सबकी अपनी अपनी समझ है| जो जिस भाषा और जिस स्तर पर पढता है उसे उसी भाषा और स्तर पर पढ़ाया जाता है| जिस तरह शिक्षा में क्रम होते हैं वैसे ही साधना और आध्यात्म में भी क्रम हैं| एक सद्गुरू आचार्य को पता होता है कि किसे क्या उपदेश और साधना देनी है, वह उसी के अनुसार शिष्य को शिक्षा देता है|
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मेरा इस देह में जन्म हुआ उससे पूर्व भी परमात्मा मेरे साथ थे, इस देह के पतन के उपरांत भी वे ही साथ रहेंगे| वे ही माता-पिता, भाई-बहिन, सभी सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में आये| यह उन्हीं का प्रेम था जो मुझे इन सब के रूप में मिला| वे ही मेरे एकमात्र सम्बन्धी और मित्र हैं| उनका साथ शाश्वत है|
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किसी भी तरह के वाद-विवाद में न पड़ कर अपना समय नष्ट न करें और उसका सदुपयोग परमात्मा के अपने प्रियतम रूप के ध्यान में लगाएँ| कमर को सीधी कर के बैठें भ्रूमध्य में ध्यान करें और एकाग्रचित्त होकर उस ध्वनी को सुनते रहें जो ब्रह्मांड की ध्वनी है| हम यह देह नहीं है, परमात्मा की अनंतता हैं| अपनी सर्वव्यापकता पर ध्यान करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१९
गीता के अनुसार हमारे पतन का कारण ..... राग-द्वेष, क्रोध, भय और अहंकार जैसे मनोविकार हैं|
ReplyDeleteइनसे मुक्ति के उपाय भी गीता में दिए हैं|
गीता भारत का प्राण है|
इस का नित्य नियमित स्वाध्याय निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेगा|
ॐ ॐ ॐ
ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु के चरण कमलों का आश्रय, निरंतर सत्संग, पराभक्ति, वैराग्य और समर्पण में पूर्णता.
ReplyDeleteऔर क्या चाहिए?
सब कुछ तो मिल गया .
Namaskar Mudgal ji.. thank you for sharing your divine thoughts. Can you share your phone number, I will be obliged to be in touch with you?
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