साधना मार्ग के कुछ अनुभव .....
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स्वामी रामतीर्थ ने अद्वैत वेदान्त पर देश-विदेश में बहुत सारे प्रवचन दिए थे जिनको लखनऊ की एक संस्था "रामतीर्थ प्रतिष्ठान" ने अंग्रेजी और हिंदी में छपा कर उपलब्ध करवाया था| दोनों भाषाओं में उनके सारे साहित्य को मैनें कोई पचीस वर्ष पूर्व खरीद कर मंगाया था| अंग्रेजी में उनका साहित्य १० खण्डों में था और हिंदी में १६ खण्डों में| अलग से उनकी जीवनी और उनके एक विद्वान् मानस शिष्य द्वारा गीता पर पुस्तक रूप में लिखे लेख भी मंगाकर उनका अध्ययन किया था|
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इस से पूर्व स्वामी विवेकानंद के सम्पूर्ण साहित्य का भी दो बार अध्ययन कर लिया था| रमण महर्षि का भी उपलब्ध साहित्य सारा पढ़ लिया था| ओशो की भी अनेक पुस्तकें पढ़ीं| पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा परमहंस योगानंद के साहित्य का| श्रीअरविन्द का साहित्य मुझे कभी रुचिकर नहीं लगा, संभवतः उसे समझना मेरी तत्कालीन बौद्धिक क्षमता से परे था| उनके महाकाव्य 'सावित्री' को तो कभी समझ ही नहीं पाया|
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परमहंस स्वामी योगानंद के साहित्य से ध्यान साधना में रूचि जगी और ध्यान का अभ्यास आरम्भ कर दिया| ध्यान में आनन्द आने लगा तो पुस्तकों का अध्ययन छूट गया| फिर उतना ही पढ़ता जिस से ध्यान करने की प्रेरणा मिलती| स्वामी योगानंद के साहित्य की यही खूबी है कि उसे पढने वाले की रूचि पढने से अधिक ध्यान साधना में लग जाती है|
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भगवान की कृपा से मुझे विविध सम्प्रदायों के अनेक महात्माओं का सत्संग मिला, इसलिए मैं सभी का सम्मान करता हूँ| सभी सम्प्रदायों के एक से बढकर एक तपस्वी और विद्वान् महात्मा मिले|
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ध्यान साधना का यह लाभ हुआ कि वेदान्त में रूचि जागृत हुई और वेदान्त की अनुभूतियों से सारे संदेह दूर हो गए| अब बौद्धिक रूप से न तो कुछ पढने की इच्छा है और न कुछ जानने की| कोई संदेह या शंका नहीं है| सारा मार्ग स्पष्ट है| बचा खुचा जो जीवन है वह परमात्मा के ध्यान में ही बिता देना है| भगवान ही प्रेरणा देकर कुछ पढवा देंगे तो पढ़ लूंगा, अन्यथा नहीं|
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एक समय था जब जीवन में बहुत अधिक असंतोष था| क्रोध भी बहुत अधिक आता था| अनेक कुंठाएँ थीं| कई बार अवसादग्रस्त भी हुआ जीवन में| आत्महत्या तक के नकारात्मक विचार जीवन में अनेक बार आये| दो बार हृदयाघात भी हुआ| पर अब वह सब एक स्वप्न सा लगता है| सारा जीवन एक मधुर सपना था|
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एक समय था जब जीवन में बहुत अधिक असंतोष था| क्रोध भी बहुत अधिक आता था| अनेक कुंठाएँ थीं| कई बार अवसादग्रस्त भी हुआ जीवन में| आत्महत्या तक के नकारात्मक विचार जीवन में अनेक बार आये| दो बार हृदयाघात भी हुआ| पर अब वह सब एक स्वप्न सा लगता है| सारा जीवन एक मधुर सपना था|
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अब तो पूर्ण प्रसन्नता है, कोई कुंठा नहीं है, कोई अवसाद नहीं है, अब क्रोध नहीं आता, कोई असंतोष या पछतावा नहीं है| भगवान की अनुभूतियाँ भी खूब होती हैं, जिनसे खूब आनंद आता है| कामनाएँ और अपेक्षाएं भी समाप्त हो गयी हैं| कुल मिलाकर जीवन सुख और प्रसन्नता से भर गया है| अब शांति ही शांति है|
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हे प्रभु, आपकी यह कृपा सदा बनी रहे| ॐ ॐ ॐ !!
०४ जनवरी २०१८
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