हर व्यक्ति एक माध्यम है जिस से परमात्मा प्रवाहित होते हैं| पर हम अपने अहंकारवश परमात्मा के उस प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं| ध्यान साधना और गहन प्रभु चिंतन द्वारा हम अपने निज जीवन में प्रभु को आकर्षित करते हैं| जितना गहरा हमारा ध्यान और चिंतन होता है, उतनी ही गहराई से भगवान हमारे में व्यक्त होते हैं| हम अधिकाधिक निष्ठावान बनने का प्रयास करें, किसी भी तरह की कोई कुटिलता और असत्यता हम में न रहे|
आप सब को नमन| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
०३ दिसंबर २०१८
आप सब को नमन| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
०३ दिसंबर २०१८
यह भगवान का शाश्वत वचन है ..... "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि|" यानी अपने आपको ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा|
ReplyDeleteयह भी भगवान का दिया हुआ शाश्वत वचन है .....
"सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||"
समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कर दूंगा --- शोक मत कर|
भगवान ने यह भी आश्वासन दिया है .....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते | अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम ||
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अब भी यदि शरणागत होकर समर्पित नहीं हुए तो किसका दोष है ?
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!