भगवान की पकड़ ......
.
कई बार प्रेमवश स्वयं भगवान ही हमें पकड़ लेते हैं, और सही मार्ग पर ले आते हैं ..... इसे कहते हैं ... भगवान की परम कृपा ..... | कोई भी माँ-बाप नहीं चाहते कि उनकी संतान बिगड़े| जब संतान गलत मार्ग पर चल पड़ती है तब माँ-बाप अपने बालक/बालिका को पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| भगवान भी हमारे माता-पिता हैं| वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि हम गलत रास्ते पर चलें| वे भी हमें पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| उनकी पकड़ का हमें आनंद लेना चाहिए|
.
मैनें जीवन में अनेक बार हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भयंकर भूलें की हैं, जिनकी कोई क्षमा नहीं हो सकती| नित्य कोई न कोई भूल होती ही रहती है| पर भगवान इतने दयालू हैं कि अपनी परम करुणा से कैसे भी मुझे सही मार्ग पर ले आते हैं और पीछे की सभी भूलों को क्षमा कर देते हैं| उनकी करुणा और प्रेम का सागर इतना विराट है कि मेरी हिमालय जैसी सी भूलें भी उन के प्रेमसिन्धु में छोटे मोटे कंकर पत्थर से अधिक नहीं है|
.
कभी कभी जब मैं स्वयं साधना नहीं कर पाता तो स्वयं वे ही मेरे स्थान पर मेरे ही माध्यम से साधना करने लगते हैं| उनकी पकड़ में बड़ा आनन्द है| कितना प्रेम है उनके हृदय में मेरे लिए! मुझे भी उन से प्रेम हो गया है| अब जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| जीवन से पूर्ण संतुष्टि है, कोई शिकायत नहीं है, और आनंद ही आनन्द है| शेष जीवन का उपयोग उनकी ध्यान साधना में ही हो|
.
कई बार प्रेमवश स्वयं भगवान ही हमें पकड़ लेते हैं, और सही मार्ग पर ले आते हैं ..... इसे कहते हैं ... भगवान की परम कृपा ..... | कोई भी माँ-बाप नहीं चाहते कि उनकी संतान बिगड़े| जब संतान गलत मार्ग पर चल पड़ती है तब माँ-बाप अपने बालक/बालिका को पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| भगवान भी हमारे माता-पिता हैं| वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि हम गलत रास्ते पर चलें| वे भी हमें पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| उनकी पकड़ का हमें आनंद लेना चाहिए|
.
मैनें जीवन में अनेक बार हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भयंकर भूलें की हैं, जिनकी कोई क्षमा नहीं हो सकती| नित्य कोई न कोई भूल होती ही रहती है| पर भगवान इतने दयालू हैं कि अपनी परम करुणा से कैसे भी मुझे सही मार्ग पर ले आते हैं और पीछे की सभी भूलों को क्षमा कर देते हैं| उनकी करुणा और प्रेम का सागर इतना विराट है कि मेरी हिमालय जैसी सी भूलें भी उन के प्रेमसिन्धु में छोटे मोटे कंकर पत्थर से अधिक नहीं है|
.
कभी कभी जब मैं स्वयं साधना नहीं कर पाता तो स्वयं वे ही मेरे स्थान पर मेरे ही माध्यम से साधना करने लगते हैं| उनकी पकड़ में बड़ा आनन्द है| कितना प्रेम है उनके हृदय में मेरे लिए! मुझे भी उन से प्रेम हो गया है| अब जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| जीवन से पूर्ण संतुष्टि है, कोई शिकायत नहीं है, और आनंद ही आनन्द है| शेष जीवन का उपयोग उनकी ध्यान साधना में ही हो|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१० दिसम्बर २०१७
कृपा शंकर
१० दिसम्बर २०१७
No comments:
Post a Comment