सुख और शांति कहाँ मिलेंगी ? .....
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सुख और शांति ये दोनों मन की एक अवस्था मात्र है | बाहर कहीं भी सुख और शांति नहीं है | प्रारब्ध कर्मों का फल टल नहीं सकता, उसे तो भुगतना ही पड़ता है | कर्म जितने कट जाएँ उतना ही ठीक है | अपने मन को ही सुखी और शांत रहने का प्रशिक्षण देना पड़ता है | पतंग उड़ती है, उड़ती है और अनंत आकाश में उड़ते ही रहना चाहती है, पर कर्मों की डोर उसे खींच कर बापस ले आती है | प्रारब्ध कर्मों के फल को तो भुगतना ही पड़ेगा |
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अपने घर में एक अलग कमरे की या अलग कोने की व्यवस्था कर लो जहाँ कम से कम व्यवधान हो | वहीं नित्य नियमित बैठ कर अपने इष्ट देव का स्मरण , जप व ध्यान करो | जब भी मन अशांत हो वहाँ जा कर बैठ जाओ, शांति वहाँ अवश्य मिलेगी |
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वह स्थान ही हिमालय की गुफा होगी, वही काशी, मथुरा, वृन्दावन और तीर्थराज प्रयाग होगा, वही त्रिवेणी होगी | सामाजिकता अपने आप ही कम हो जायेगी और कामनाएँ भी समाप्त होने लगेंगी | स्वाध्याय के लिए रामचरितमानस और गीता .... ये दो ग्रन्थ ही पर्याप्त हैं | इनसे पूरा मार्गदर्शन मिल जाता है |
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भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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सुख और शांति ये दोनों मन की एक अवस्था मात्र है | बाहर कहीं भी सुख और शांति नहीं है | प्रारब्ध कर्मों का फल टल नहीं सकता, उसे तो भुगतना ही पड़ता है | कर्म जितने कट जाएँ उतना ही ठीक है | अपने मन को ही सुखी और शांत रहने का प्रशिक्षण देना पड़ता है | पतंग उड़ती है, उड़ती है और अनंत आकाश में उड़ते ही रहना चाहती है, पर कर्मों की डोर उसे खींच कर बापस ले आती है | प्रारब्ध कर्मों के फल को तो भुगतना ही पड़ेगा |
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अपने घर में एक अलग कमरे की या अलग कोने की व्यवस्था कर लो जहाँ कम से कम व्यवधान हो | वहीं नित्य नियमित बैठ कर अपने इष्ट देव का स्मरण , जप व ध्यान करो | जब भी मन अशांत हो वहाँ जा कर बैठ जाओ, शांति वहाँ अवश्य मिलेगी |
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वह स्थान ही हिमालय की गुफा होगी, वही काशी, मथुरा, वृन्दावन और तीर्थराज प्रयाग होगा, वही त्रिवेणी होगी | सामाजिकता अपने आप ही कम हो जायेगी और कामनाएँ भी समाप्त होने लगेंगी | स्वाध्याय के लिए रामचरितमानस और गीता .... ये दो ग्रन्थ ही पर्याप्त हैं | इनसे पूरा मार्गदर्शन मिल जाता है |
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भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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