महत्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं .....
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दूसरों के विचारों के अनुकूल चलना, दूसरों का जीवन जीना, दूसरों को सिर्फ प्रसन्न रखने के लिए अपनी भावनाओं का दमन, और अपने सद्विचारों का परित्याग करना ..... यह हमारे पतन का एक मुख्य कारण है | कौन क्या कह रहे हैं, कौन क्या सोच रहे हैं, इस बात का वास्तव में कोई महत्त्व नहीं है, चाहे वे कितने भी प्रिय हों | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं | हमारा कार्य सिर्फ परमात्मा को प्रसन्न कर के उनके साथ जुड़ना है, न कि उन लोगों से जो हमें उन से दूर कर रहे हैं |
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भगवान भुवनभास्कर आदित्य जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो वे क्या यह सोचते हैं कि मार्ग का तिमिर उनके बारे में क्या विचार कर रहा है ? वे तो अपने मार्ग पर निरंतर चलते रहते हैं | उन्हें अपने मार्ग में कहीं अन्धकार का अवशेष भी नहीं मिलता | वे यह चिंता नहीं करते कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है | जिन परिस्थितियों और घटनाओं से हम निकलते हैं वे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं | हर परिस्थिति कुछ सीखने का अवसर है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए हम अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह रहेगी या अपने लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही होगी | हमारे आदर्श तो मार्तंड अंशुमाली भुवन भास्कर भगवान सूर्य हैं जो निरंतर प्रकाशमान और गतिशील हैं | उनकी तरह कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य की ज्योति को सतत् प्रज्ज्वलित रखो और उस दिशा में उसका अनुसरण करते हुए निरंतर अग्रसर रहो | एक ना एक दिन हम पाएँगे कि आत्म-सूर्य की वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं ही हैं |
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ॐ नमः शिवाय | हे भगवान परम शिव, आपकी जय हो, आप ही मेरे जीवन हैं | एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी मैं आपसे कभी दूर न रहूँ | जो आप हैं वह ही मैं हूँ | आप ही मेरी गति और पूर्णता हैं, मैं आपके साथ एक हूँ | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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दूसरों के विचारों के अनुकूल चलना, दूसरों का जीवन जीना, दूसरों को सिर्फ प्रसन्न रखने के लिए अपनी भावनाओं का दमन, और अपने सद्विचारों का परित्याग करना ..... यह हमारे पतन का एक मुख्य कारण है | कौन क्या कह रहे हैं, कौन क्या सोच रहे हैं, इस बात का वास्तव में कोई महत्त्व नहीं है, चाहे वे कितने भी प्रिय हों | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं | हमारा कार्य सिर्फ परमात्मा को प्रसन्न कर के उनके साथ जुड़ना है, न कि उन लोगों से जो हमें उन से दूर कर रहे हैं |
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भगवान भुवनभास्कर आदित्य जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो वे क्या यह सोचते हैं कि मार्ग का तिमिर उनके बारे में क्या विचार कर रहा है ? वे तो अपने मार्ग पर निरंतर चलते रहते हैं | उन्हें अपने मार्ग में कहीं अन्धकार का अवशेष भी नहीं मिलता | वे यह चिंता नहीं करते कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है | जिन परिस्थितियों और घटनाओं से हम निकलते हैं वे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं | हर परिस्थिति कुछ सीखने का अवसर है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए हम अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह रहेगी या अपने लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही होगी | हमारे आदर्श तो मार्तंड अंशुमाली भुवन भास्कर भगवान सूर्य हैं जो निरंतर प्रकाशमान और गतिशील हैं | उनकी तरह कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य की ज्योति को सतत् प्रज्ज्वलित रखो और उस दिशा में उसका अनुसरण करते हुए निरंतर अग्रसर रहो | एक ना एक दिन हम पाएँगे कि आत्म-सूर्य की वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं ही हैं |
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ॐ नमः शिवाय | हे भगवान परम शिव, आपकी जय हो, आप ही मेरे जीवन हैं | एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी मैं आपसे कभी दूर न रहूँ | जो आप हैं वह ही मैं हूँ | आप ही मेरी गति और पूर्णता हैं, मैं आपके साथ एक हूँ | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
आश्विन शु.२, वि.सं.२०७४
22/09/2017
आश्विन शु.२, वि.सं.२०७४
22/09/2017
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