|| ये शारदीय नवरात्र समष्टि के लिए मंगलमय हों ||
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कृपया मुझे क्षमा करें, जो मैं लिखने जा रहा हूँ, वह छोटे मुँह वाली बड़ी बात है | मुझे इतनी बड़ी बात नहीं लिखनी चाहिए | मैं कोई धर्माचार्य नहीं हूँ | पर एक अकिंचन निष्ठावान साधक के रूप में तो लिख ही सकता हूँ |
"मनुष्य की कोई भी शक्ति, चाहे वह कितनी भी विध्वंशक या नकारात्मक हो, परमात्मा की इच्छा के सामने नहीं टिक सकती | परमात्मा से जुड़ कर ही हम अपने जीवन का कोई श्रेष्ठतम कार्य कर सकते हैं | जीवन में यदि हम कोई भी स्थायी अच्छा कार्य करना चाहें तो परमात्मा से जुड़ना ही पड़ेगा |"
"परमात्मा का अधिकाधिक गहनतम ध्यान करें, और उस चेतना में ही दिन भर के सारे सांसारिक कार्य करें| सारे कार्य परमात्मा के लिए ही करें, और फिर समर्पित होकर परमात्मा को ही अपने माध्यम से कार्य करने दें | परमात्मा को स्वयँ के माध्यम से प्रवाहित होने दें | परमात्मा की अनंतता और पूर्णता में स्वयं को विलीन कर दें |
इस से अधिक लिखने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ सितम्बर २०१७
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कृपया मुझे क्षमा करें, जो मैं लिखने जा रहा हूँ, वह छोटे मुँह वाली बड़ी बात है | मुझे इतनी बड़ी बात नहीं लिखनी चाहिए | मैं कोई धर्माचार्य नहीं हूँ | पर एक अकिंचन निष्ठावान साधक के रूप में तो लिख ही सकता हूँ |
"मनुष्य की कोई भी शक्ति, चाहे वह कितनी भी विध्वंशक या नकारात्मक हो, परमात्मा की इच्छा के सामने नहीं टिक सकती | परमात्मा से जुड़ कर ही हम अपने जीवन का कोई श्रेष्ठतम कार्य कर सकते हैं | जीवन में यदि हम कोई भी स्थायी अच्छा कार्य करना चाहें तो परमात्मा से जुड़ना ही पड़ेगा |"
"परमात्मा का अधिकाधिक गहनतम ध्यान करें, और उस चेतना में ही दिन भर के सारे सांसारिक कार्य करें| सारे कार्य परमात्मा के लिए ही करें, और फिर समर्पित होकर परमात्मा को ही अपने माध्यम से कार्य करने दें | परमात्मा को स्वयँ के माध्यम से प्रवाहित होने दें | परमात्मा की अनंतता और पूर्णता में स्वयं को विलीन कर दें |
इस से अधिक लिखने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ सितम्बर २०१७
कर्ता तो सिर्फ भगवान ही हैं | गुरु रूप ब्रह्म भगवान परमशिव ही हमारी देह में साधना करते हैं | सारी महिमा उन्हीं की है, और सारा श्रेय भी उन्हीं को है | वे ही उपासक, उपास्य और उपासना हैं, हम नहीं | यह देह उनका एक उपकरण मात्र है | ॐ ॐ ॐ ||
ReplyDeleteपुनश्चः : --- सद् गुरु और इष्ट देव को ही कर्ता बनाना चाहिए | धीरे धीरे ये भी नाम-रूप से परे हो जाते हैं और सिर्फ एक विचार बचता है | उस विचार में ही रमण करना पड़ता है | साधक को धैर्यवान होना चाहिए | धैर्य बनाए रखना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी तपस्या है | श्रुति का ज्ञान समाधिगम्य है, बुद्धिगम्य नहीं | अतः धैर्य रखना अति आवश्यक है | ॐ ॐ ॐ ||