Thursday, 14 September 2017

ह्रदय में परम प्रेम, काम पर विजय, सत्यपरायणता और समभाव ... ये आध्यात्मिकता के लक्षण हैं ....

ह्रदय में परम प्रेम, काम पर विजय, सत्यपरायणता और समभाव ... ये आध्यात्मिकता के लक्षण हैं ....
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यह बात बिना किसी संदेह के भगवान ने स्पष्ट कर दी है कि जब तक मन में कामनाएँ हैं तब तक हम माया के आवरण में हैं, और कामवासना तो सबसे बड़ी बाधा है| माया के दो अस्त्र है .... आवरण और विक्षेप .... जिनसे मुक्ति हरिकृपा से ही मिलती है| इनसे मुक्त हुए बिना परमात्मा का आभास नहीं हो सकता|
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भगवान सत्यनारायण हैं| सत्य ही परमात्मा है .... यह अनुभूति का विषय है, बौद्धिक नहीं| परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं| यह बात ध्यान में ही समझ में आती है, अतः इस पर बौद्धिक चर्चा करना व्यर्थ है|
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समभाव में स्थिति ही ज्ञानी होने का लक्षण है| ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं| पुस्तकों का काम प्रेरणा देना और एक आधार तैयार करना है| ज्ञान की प्राप्ति परमात्मा की कृपा से ही होती है, बाकी सब तो उसकी भूमिका मात्र है| चाहे स्वयं यमराज ही प्राण लेने सामने आ जाये तो भी किसी तरह के शोक, भय, दुःख और मलाल का न होना, ज्ञानी होने का लक्षण है|
विश्व की सारी धन-संपदा मिल जाए तो भी कोई हर्ष न हो, किसी भी तरह का लोभ न हो, यह ज्ञानी होने का लक्षण है|
सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु आदि किसी भी तरह की परिस्थिति में विचलित न होना, यह ज्ञानी होने का लक्षण है|
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अभी अभी हमारे मोहल्ले की माताएँ पास के ही एक मंदिर से नित्य की तरह नियमित प्रभात-फेरी "श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा" भजन गाते गाते निकाल रही हैं| उनकी मधुर वाणी सुनकर भाव विह्वल हो गया हूँ, और हृदय का परम प्रेम जाग उठा है| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|
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ॐ तत्सत् | श्रीहरि | ॐ ॐ ॐ ||

१२ सितम्बर २०१७

1 comment:

  1. कई बार हमें अंधा बनकर आसपास की घटनाओं की उपेक्षा करनी पड़ती है| कई बार दाँत जीभ को काट लेते है, फिर भी दाँत और जीभ साथ साथ ही रहते हैं| दोनों एक दूसरे का क्या बिगाड़ सकते हैं? साथ रहना उनकी नियति है| रेज़र की ब्लेड नुकीली होती है पर पेड़ को नहीं काट सकती| कुल्हाड़ी नुकीली होती है पर दाढ़ी नहीं बना सकती| सूई का काम तलवार नहीं कर सकती, और तलवार का काम सूई नहीं कर सकती| हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है| जीवन में न चाहते हुए भी सब के साथ प्रेम से रहना ही पड़ता है|

    दोनों आँखें एक-दूसरे को देख नहीं सकतीं, फिर भी साथ साथ देखती हैं, साथ साथ झपकती हैं और साथ साथ रोती हैं| घर-परिवार और समाज में विवशता की बजाय प्रेम से जीयें तो अधिक अच्छा होगा| ॐ ॐ ॐ ||

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