Saturday, 16 September 2017

प्रभु को आना ही पड़ेगा .....

प्रभु को आना ही पड़ेगा .....
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वेदांत की दृष्टी से तो एकमात्र "मैं" ही हूँ, मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई अन्य नहीं है | सब प्राणी मेरे ही प्रतिविम्ब हैं | मैं विभिन्न रूपों में स्वयं से ही मिलता रहता हूँ | मैं द्वैत भी हूँ और अद्वैत भी, मैं साकार भी हूँ और निराकार भी, एकमात्र अस्तित्व मेरा ही है | सोहं, ॐ ॐ ॐ मैं ही हूँ | मैं ही परमशिव हूँ और मैं ही परमब्रह्म हूँ, मैं यह देह नहीं हूँ |
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परमात्मा प्रदत्त विवेक हम सब को प्राप्त है | उस विवेक के प्रकाश में ही उचित निर्णय लेकर सारे कार्य करने चाहिएँ | वह विवेक ही हमें एक-दुसरे की पहिचान कराएगा और यह विवेक ही बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं |
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परमात्मा के संकल्प से सृष्टि बनी है अतः वे सब कर्मफलों से परे हैं | अपनी संतानों के माध्यम से वे ही उनके फलों को भी भुगत रहे हैं | हम कर्म फलों को भोगने के लिए अपने अहंकार और ममत्व के कारण ही बाध्य हैं | माया के बंधन शाश्वत नहीं हैं, उनकी कृपा से एक न एक दिन वे भी टूट जायेंगे | वे आशुतोष हैं, प्रेम और कृपा करना उनका स्वभाव है | वे अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते |
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परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, जिसके लिए वे भी सदा तरसते हैं, और वह है ..... "हमारा प्रेम" | उन्हें प्रसन्नता भी तभी होती है जब उन्हें हमारा परम प्रेम मिलता है | कभी न कभी तो हमारे प्रेम में भी पूर्णता आ ही जाएगी, और कृपा कर के हमसे वे हमारा समर्पण भी करवा लेंगे |
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कोई भी पिता अपने पुत्र के बिना सुखी नहीं रह सकता | जितनी पीड़ा मुझे परमात्मा से वियोग की है, उससे अधिक पीड़ा परमात्मा को मुझसे वियोग की है | वे भी मेरे बिना नहीं रह सकते | एक न एक दिन तो वे आयेंगे ही, अवश्य आयेंगे, उन्होंने मुझे जहाँ भी रखा है, वहीं उन्हें आना ही पड़ेगा | मैं कहीं भी नहीं जाऊँगा | मुझे उनके दिए जीवन से पूर्ण संतुष्टि और तृप्ति है |
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कोई प्रार्थना नहीं है, सब प्रार्थनाएँ व्यर्थ हैं | क्या अपने माँ-बाप से मिलने के लिए भी कोई प्रार्थना करनी पडती है ? अब तो प्रार्थना करना फालतू सी बात लगती है | यह तो मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है | मेरी न कोई माँग है और न ही कोई प्रार्थना | जो मैं हूँ सो हूँ, यह मेरा स्वभाव है |
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तत्वमसि | सोहं | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||

१५ सितम्बर २०१७

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