एकमात्र सत्य ब्रह्म ही है .....
.
ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह् धातु से है जिसका अर्थ है बृहणशील, विस्तृत या विशाल, जिसका निरंतर विस्तार होता रहता है | इसी ब्रह्म से "एकोSहं बहुस्याम्" की भावना से सृष्टि का विस्तार हुआ है | यह परमाणु से भी सूक्ष्म और महत से भी बड़ा है | यह अपरिभाष्य, सच्चिदानन्दरूप और अनुभूतिगम्य है | इस पर उपनिषदों में खूब चर्चा हुई है और भाष्यकार आचार्य शंकर ने इस की खूब व्याख्या की है |
उस ब्रह्म से साक्षात्कार और एकत्व ही हमारे जीवन का लक्ष्य है | गहन ध्यान में ही इसकी अनुभूति की जा सकती है |
.
ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह् धातु से है जिसका अर्थ है बृहणशील, विस्तृत या विशाल, जिसका निरंतर विस्तार होता रहता है | इसी ब्रह्म से "एकोSहं बहुस्याम्" की भावना से सृष्टि का विस्तार हुआ है | यह परमाणु से भी सूक्ष्म और महत से भी बड़ा है | यह अपरिभाष्य, सच्चिदानन्दरूप और अनुभूतिगम्य है | इस पर उपनिषदों में खूब चर्चा हुई है और भाष्यकार आचार्य शंकर ने इस की खूब व्याख्या की है |
उस ब्रह्म से साक्षात्कार और एकत्व ही हमारे जीवन का लक्ष्य है | गहन ध्यान में ही इसकी अनुभूति की जा सकती है |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
सारे पदार्थ एक विचार मात्र हैं ......
ReplyDelete.
आज का भौतिक विज्ञान यह कहता है कि पदार्थ मूल रूप से ऊर्जा है और ऊर्जा भी एक विचार ही है| व्यवहारिक जीवन में इसे हम कैसे समझ सकते हैं?
जब भ्रूमध्य में आध्यात्मिक दृष्टी (Spiritual eye), जिसे अंतर्दृष्टि या तीसरी आँख भी कह सकते हैं, खुल जाती है तब यह रहस्य अनावृत हो जता है| अति उन्नत योगी जो कूटस्थ चैतन्य में यानि ब्राह्मी स्थिति में निरंतर रहते हैं, वे इस रहस्य को जानते हैं|
ॐ ॐ ॐ ||