Thursday, 13 July 2017

कर्म और कर्म फल .......

कर्म और कर्म फल .......
-----------------------
कितने भी संचित कर्मों का अवशेष हो इसकी चिंता न कर सर्वप्रथम प्रभु को उपलब्ध हों, यानि ईश्वर को प्राप्त करने के निमित्त बनें अपनी पूर्ण शक्ति से| कर्मों की चिंता जगन्माता को करने दो| सृष्टि को जगन्माता अपने हिसाब से चला रही है| वे अपनी सृष्टि चलाने में सक्षम हैं, उन्हें हमारी सलाह की आवश्यकता नहीं है|
>
कर्मों के बंधन तभी तक हैं जब तक अहंकार और मोह है| इनके नष्ट होने पर हम अच्छे-बुरे सभी कर्मों से मुक्त हैं|
>
छोटी मोटी प्रार्थनाओं से कुछ नहीं होने वाला, गहन ध्यान में उतरो|
अहैतुकी परम प्रेम और पूर्ण समर्पण ................ इससे कम कुछ भी नहीं |
>
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


जुलाई १३, २०१५

1 comment:

  1. जिन सगे-सम्बन्धियों, मित्रों, आदि से हमारा मोह होता है, उनके भी सभी अच्छे-बुरे कर्मफलों के हम सहभागी होते हैं| यह एक अनुभूत सत्य है| इसीलिए मोह को समस्त व्याधियों का मूल कहा गया है|
    मुझे जीवन में कुछ लोगों से अत्यधिक मोह रहा है| उनके प्रारब्ध में जो पीड़ाएँ लिखी थीं, और जो कष्ट उन्होंने भुगते, उतने ही कष्ट मैनें भी भुगते हैं| उनसे मोह कम करने से वे दुःख और पीड़ाएँ भी कम हुईं| अंततः मैंने पाया कि मेरे उन कष्टों का कारण मेरा उनके प्रति मोह ही था| मुझे लगता है कि 'मोक्ष' शब्द का अर्थ ही मोह का क्षय हो जाना है|
    ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

    ReplyDelete