Thursday, 13 July 2017

मैं अहर्निश किस का चिंतन करूँ ? .....

मैं अहर्निश किस का चिंतन करूँ ? .....
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भगवान आचार्य शंकर स्वयं से यह प्रश्न पूछते हैं ...... अहर्निशं किं परिचिन्तनीयम् ?
फिर स्वयं ही इसका उत्तर भी दे देते हैं ..... संसार मिथ्यात्वशिवात्मतत्त्वम् |
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यह संसार एक मृगतृष्णा है| इसे पार करने के लिए न तो किसी नौका की आवश्यकता है और न ही तैरने की| अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही इसे पार करना है|
पर आत्मस्वरूप में स्थित कैसे हों ? इसका उत्तर भी यही होगा कि संसार की अनित्यता का बार बार चिंतन कर के परमात्मा परमशिव का आत्मस्वरूप से अनुसंधान करें|
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यह देह एक साधन मात्र है| इसको व्यस्त रखो और उतना ही खाने को दो जितना इसके लिए आवश्यक है, अन्यथा यह एक धोखेबाज मित्र है जो कभी भी धोखा दे सकता है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

  1. भगवान ने तो बड़े प्रेम से हमें अपने ह्रदय में बैठा रखा है| उनसे कुछ माँगने वाली बात तो समाप्त हो गई है| सब कुछ तो दे दिया उन्होंने| अब बचा ही क्या है?

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  2. विषयों (वासनाओं) का चिंतन विष से भी अधिक घातक होता है|
    विष से तो सिर्फ मृत्यु ही होती है, पर विषय तो अनेक जन्म खराब कर देता है|

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