Thursday, 15 June 2017

हम परमात्मा में पूर्ण हैं.......

हम परमात्मा में पूर्ण हैं.......
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इस सत्य को वे ही समझ सकते हैं जो ध्यान साधना की गहराई में निज चेतना के विस्तार और समष्टि के साथ अपनी एकात्मता की कुछ कुछ अनुभूति कर चुके हैं| अपनी पूर्णता का अज्ञान ही हमें दुखी बनाता है| दुःख शब्द का अर्थ ही है जो आकाश तत्व से दूर है| सुख का अर्थ है जो आकाश तत्व के साथ है| आध्यात्मिक स्तर पर हम स्वयं को यह देह मानते हैं यही हमारी परिच्छिन्नता और सब प्रकार के दुःखों का कारण है|
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परमात्मा की पूर्णता का ध्यान करें और निज अहं को उसमें विलीन कर दें| अन्य कोई उपाय मेरी सीमित दृष्टि में नहीं है| यह छुरे की धार पर चलने वाला मार्ग है|
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मुझे भगवान ने इतनी पात्रता नहीं दी है कि इस विषय को गहराई से समझा सकूँ| फिर भी मैंने यह प्रयास किया है| अपनी अपनी गुरु-परम्परा के अनुसार परमात्मा पर ध्यान और वैराग्य का अभ्यास करें| हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध सिर्फ परमात्मा से ही है| अपनी चेतना को उन्हीं की चेतना से युक्त करने का सदा अभ्यास करते रहें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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