आज गणेश-गीता के कुछ अंशों का स्वाध्याय करने का अवसर मिला| स्वयं गणेश जी ने राजा वरेण्य को जो उपदेश दिए वे गणेश-गीता कहलाते हैं| राजा वरेण्य मुमुक्षु स्थिति में थे, और अपने धर्म और कर्तव्य को बहुत अच्छी तरह जानते थे| इस ग्रंथ के ११ अध्यायों में ४१४ श्लोक हैं| श्रीमद्भगवद्गीता और गणेशगीता में लगभग सारे विषय समान हैं| जो गणेश जी के भक्त हैं उन्हें इस ग्रंथ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए|
पुनश्च: :----
तब भगवान गजानन ने राजा वरेण्य को योगामृत से भरी ‘श्रीगणेशगीता’ का उपदेश किया। श्रीगणेशगीता को सुनने के बाद राजा वरेण्य विरक्त हो गए और पुत्र को राज्य सौंपकर वन में चले गए| वहां योग का आश्रय लेकर वे मोक्ष को प्राप्त हुए|
"यथा जलं जले क्षिप्तं जलमेव हि जायते| तथा तद्ध्यानत: सोऽपि तन्मयत्वमुपाययौ||"
‘जिस प्रकार जल जल में मिलने पर जल ही हो जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मरूपी गणेश का चिन्तन करते हुए राजा वरेण्य भी उस ब्रह्मरूप में समा गये|"
२ सितंबर २०१९
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