अनेक कारणों से मैं जीवन में क्षुब्ध रहा हूँ, लेकिन अब अपनी सोच बदल ली है, जिससे जीवन में सुख-शांति है। यह सृष्टि मेरी नहीं, परमात्मा की है। उसे उनकी प्रकृति अपने अपरिवर्तनीय नियमों के अनुसार चला रही है। प्रकृति तो अपने नियमों के अनुसार ही चलेगी, जिन्हें हम नहीं समझते हैं। हमें ही स्वयं को बदलना होगा। हम जो कुछ भी और जैसे भी हैं, अपने ही कर्मों के कारण हैं।
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