Thursday, 26 June 2025

सम्पूर्ण सृष्टि ही मेरा शरीर हो सकता है, यह भौतिक देह नहीं ---

 सम्पूर्ण सृष्टि ही मेरा शरीर हो सकता है,

यह भौतिक देह नहीं ---
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है, और वह है -- परमात्मा का ध्यान। परम-प्रेम (भक्ति) और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, व ज्ञान में निष्ठा होती है, जो एक उच्चतम स्थिति है, जहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है। त्याग करने को भी कुछ अवशिष्ट नहीं रहता। यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है।
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जब मैं इस तथाकथित मेरी देह को देखता हूँ तब स्पष्ट रूप से यह बोध होता है कि यह तो मूल रूप से एक ऊर्जा-खंड है, जो पहले अणुओं का एक समूह बनी, फिर पदार्थ बनी। फिर इसके साथ अन्य सूक्ष्मतर तत्वों से निर्मित मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार आदि जुड़े। इस ऊर्जा-खंड के अणु निरंतर परिवर्तनशील हैं। इस ऊर्जा-खंड ने कैसे जन्म लिया और धीरे धीरे यह कैसे विकसित हुआ इसके पीछे परमात्मा का एक संकल्प और विचार है। ये सब अणु और सब तत्व भी एक दिन विखंडित हो जायेंगे। पर मेरा अस्तित्व फिर भी बना रहेगा।
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अब यह प्रश्न उठता है कि मैं कौन हूँ ? क्या मैं यह शरीर हूँ ?
>>>>> निश्चित रूप से मैं यह शरीर रूपी-ऊर्जा खंड नहीं हूँ <<<<<
फिर मैं कौन हूँ ?
यह सत्य है कि मैं परमात्मा के मन का एक विचार हूँ जिसे परमात्मा ने पूर्ण स्वतंत्रता दी है|
>>>> मैं परमात्मा का अमृत पुत्र हूँ। मैं और मेरे पिता एक हैं। मैं यह देह नहीं हूँ, बल्कि परमात्मा का एक संकल्प हूँ। परमात्मा की अनंतता मेरी ही अनंतता है, उनका प्रेम ही मेरा भी प्रेम है, और उनकी पूर्णता मेरी भी पूर्णता है। <<<<<
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"मैं" अपरिछिन्न और अपरोक्ष केवल एक हूँ, मेरे सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व नहीं है। जो ब्रह्म है वह ही इस सम्पूर्णता के साथ व्यक्त हुआ है। मैं उसके साथ एक हूँ, अतः निश्चित रूप से मैं यह देह नहीं अपितु प्रत्यगात्मा विकार-रहित ब्रह्म हूँ। मैं धर्म और अधर्म से परे जीवन-मुक्त और देह-मुक्त हूँ।
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यह मेरा अंतर्भाव है। यदि मैं स्वयं को देह मानता हूँ तो यह मेरा अहंकार होगा। मैं सर्वव्यापि आत्म-तत्व हूँ जो सत्य है। जो कुछ भी सृष्ट हुआ है, और जो कुछ भी सृष्ट होगा, वह मैं ही हूँ। पूरी समष्टि भी मैं हूँ, और जो समष्टि से परे है, वह भी मैं ही हूँ। मैं पूर्ण हूँ और परमात्मा के साथ एक हूँ।
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शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२७ जून २०१६

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