जानने योग्य सिर्फ भगवान ही हैं ---
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मनुष्य का हृदय तो थोड़ी सी भक्ति से ही तृप्त हो जाता है, लेकिन मन सदा ही अतृप्त रहता है। अतृप्त मन को जब भगवान की भूख लगनी आरंभ हो जाये तब मान लेना चाहिये कि कोई पुण्योदय हुआ है। भगवान भी सबके हृदय में तो रहते हैं, लेकिन मन में कम ही आते हैं। इसलिए मन की बात न सुनें, हृदय की ही सुनें। मन धोखा दे सकता है, परंतु हृदय नहीं, क्योंकि हृदय में भगवान है।
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भगवान कहते हैं ---
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥१५:१५॥"
अर्थात् -- मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है। समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ॥
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अतः जानने योग्य सिर्फ भगवान ही हैं। उनकी कृपा ही किसी को सर्वज्ञ बना सकती है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२७ मई २०२१
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