Friday, 13 September 2019

पूरी समष्टि का हित देखें, इस देह मात्र का या इससे जुड़े व्यक्तियों का ही नहीं .....

पूरी समष्टि का हित देखें, इस देह मात्र का या इससे जुड़े व्यक्तियों का ही नहीं .....
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः| ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः||१२:४||"
अर्थात .... इन्द्रिय समुदाय को सम्यक् प्रकार से नियमित करके, सर्वत्र समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं||
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वास्तव में यह सम्पूर्ण सृष्टि ही हमारी देह है| हम इस से पृथक नहीं हैं| इसे हम ध्यान साधना द्वारा ही ठीक से समझ सकते हैं| भगवान वासुदेव की परम कृपा हम सब पर निरंतर बनी रहे| वे स्वयं ही हमें अपने वचनों का सही अर्थ समझा सकते हैं|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
७ सितंबर २०१९

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