पूरी समष्टि का हित देखें, इस देह मात्र का या इससे जुड़े व्यक्तियों का ही नहीं .....
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः| ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः||१२:४||"
अर्थात .... इन्द्रिय समुदाय को सम्यक् प्रकार से नियमित करके, सर्वत्र समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं||
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः| ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः||१२:४||"
अर्थात .... इन्द्रिय समुदाय को सम्यक् प्रकार से नियमित करके, सर्वत्र समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं||
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वास्तव में यह सम्पूर्ण सृष्टि ही हमारी देह है| हम इस से पृथक नहीं हैं| इसे हम ध्यान साधना द्वारा ही ठीक से समझ सकते हैं| भगवान वासुदेव की परम कृपा हम सब पर निरंतर बनी रहे| वे स्वयं ही हमें अपने वचनों का सही अर्थ समझा सकते हैं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
७ सितंबर २०१९
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