भ्रामरी गुफा का द्वार .....
भ्रामरी गुफा के द्वार पर 'प्रमाद' नाम का एक भयानक राक्षस और 'आवरण' व 'विक्षेप' नाम की दो विकराल राक्षसियाँ बैठी हैं जो किसी को भी भीतर नहीं जाने देते| हमें कैसे भी इन तीनों असुरों को चकमा देकर भीतर प्रवेश करना है, क्योंकि भगवान को पाने का मार्ग इस गुफा के भीतर से ही है| हमें सिर्फ और सिर्फ भगवान ही चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं| अतः इस गुफा में प्रवेश करना ही होगा|
हमें न तो भगवान की विभूतियों से कोई मतलब है, न उनके ऐश्वर्य से, और न उनकी किसी महिमा से| न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए| भगवान से अन्य किसी भी कामना का होना सबसे बड़ा छलावा व भ्रमजाल है, अतः हमें सिर्फ भगवान ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं| किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई प्रयोजन हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
भ्रामरी गुफा के द्वार पर 'प्रमाद' नाम का एक भयानक राक्षस और 'आवरण' व 'विक्षेप' नाम की दो विकराल राक्षसियाँ बैठी हैं जो किसी को भी भीतर नहीं जाने देते| हमें कैसे भी इन तीनों असुरों को चकमा देकर भीतर प्रवेश करना है, क्योंकि भगवान को पाने का मार्ग इस गुफा के भीतर से ही है| हमें सिर्फ और सिर्फ भगवान ही चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं| अतः इस गुफा में प्रवेश करना ही होगा|
हमें न तो भगवान की विभूतियों से कोई मतलब है, न उनके ऐश्वर्य से, और न उनकी किसी महिमा से| न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए| भगवान से अन्य किसी भी कामना का होना सबसे बड़ा छलावा व भ्रमजाल है, अतः हमें सिर्फ भगवान ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं| किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई प्रयोजन हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग
मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं| भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण,
हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ..... ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे
कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ
शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के
सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है| नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है| अहंकारी लोगों की बहलाने फुसलाने वाली मीठी मीठी बातें विष मिले हुए शहद की तरह हैं| ऐसे लोगों की ओर देखें ही मत| दृष्टी सिर्फ भगवान की ओर ही रहे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है| नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है| अहंकारी लोगों की बहलाने फुसलाने वाली मीठी मीठी बातें विष मिले हुए शहद की तरह हैं| ऐसे लोगों की ओर देखें ही मत| दृष्टी सिर्फ भगवान की ओर ही रहे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
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