यदि भगवान में श्रद्धा और विश्वास है तो भयभीत होने का कोई कारण नहीं है | हमारे किसी भी शास्त्र में भयभीत होने की शिक्षा नहीं दी गयी है | यह एक विजातीय प्रभाव है | निर्भीकता की जितनी अच्छी शिक्षा गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने दी है, उतनी कहीं भी किसी भी अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है | डरना ही है तो अपने बुरे कर्मफलों से डरो, अन्य किसी भी वस्तु से नहीं |
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एक सच्चे हिन्दू को कभी भी नहीं डरना चाहिए| भगवान ने हमारी ही रक्षा के लिए अस्त्र धारण कर रखे हैं| उन शस्त्रधारी भगवान को ह्रदय में रखकर असत्य व अन्धकार की शक्तियों का निरंतर प्रतिकार करो, और अपने पथ पर अडिग रहो|
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जीवन में विषमताओं को स्वीकार करो | ये सब विषमताएँ हमारे विगत के विचारों का ही घनीभूत रूप हैं जो हमारे समक्ष प्रकट हो रहे हैं | ये हमारी ही सृष्टि हैं |
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सत्य का प्रमाण स्वयं की ही अनुभूति है | उन सब विचारधाराओं से दूर रहो जो दूसरों से घृणा करना सिखाती हैं, जो अपने से पृथक विचार वालों की ह्त्या करना सिखाती है, जो आत्महीनता का बोध कराती हैं, जो यह सिखाती हैं कि तुम जन्म से पापी हो, या फिर असहमति होने पर हमें भयभीत करती हैं | परमात्मा प्रेम का विषय है, भय का नहीं | जो सीख हमें भयभीत होना सिखाती है वह धार्मिक नहीं हो सकती |
१७ नवम्बर २०१७
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