Tuesday, 29 August 2017

राम काज क्या है ? क्या सीता जी की खोज ही राम काज है ?

राम काज क्या है ? क्या सीता जी की खोज ही राम काज है ? >>>>>
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यह विषय इतना व्यापक है कि अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने इस विषय पर बहुत अधिक लिखा और कहा है| रामायण में सबसे बड़ा आदर्श हनुमान जी का है जिन्हें राम काज करते करते कभी भी विश्राम नहीं मिला .... "राम काज कीन्हें बीना मोहि कहाँ विसराम"| इसका भी कोई बहुत बड़ा आध्यात्मिक अर्थ है| रामायण के बड़े बड़े मर्मज्ञ इस विषय पर जब बोलना आरम्भ करते हैं तो कई घंटों तक बोलने के बाद भी कहते हैं कि हम असली बात तो समझा ही नहीं पाए|
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आचार्य शंकर ने सीता जी को शांति रूप में नमन किया है ......
"शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते" |
इस का अर्थ मुझे तो यही समझ में आया है कि शांति रूपी सीता जी उसी में समाहित है जो आत्मा में रमण करता हुआ विराजित है| अर्थात आत्मा यानि आत्म-तत्व में निरंतर रमण ही सीता जी की खोज है|
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पंडित रामकिंकर उपाध्याय के अनुसार ........ “वेदान्तियों की दृष्टि में सीता शांति हैं, भक्तों की दृष्टि में वे भक्ति हैं, कर्मयोगी की दृष्टि में वे शक्ति हैं और तुलसीदास जैसे अपने आप को दीन मानने वालों की दृष्टि में वे माँ हैं|"
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भगवान श्रीराम तो सर्व समर्थ थे, उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं थी| फिर भी उन्होंने दूसरों की सहायता ली, इसके पीछे भी अवश्य ही कोई न कोई आध्यात्मिक रहस्य है, जिसका पता हमें करना है| भगवान ने यह कार्य हमें सौंपा है, जो हमें करना ही पड़ेगा| यह काम यानि सीता जी की ही खोज हम सब का दायित्व है और जब तक हम सीता जी को खोज नहीं लेते तब तक जीवन में कहीं भी कभी भी विश्राम नहीं मिलेगा|
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इस विषय पर मैंने लिखना तो आरम्भ कर दिया पर इसका समापन कैसे करूँ यह समझ में नहीं आ रहा है| जो मैं कहना चाहता था वह तो कह ही नहीं सका, और कभी कह भी नहीं सकूँगा| पर इतना तो निश्चित है कि सीता जी खोज हमारी अपनी ही शाश्वत खोज है और यही रामकाज है| निज जीवन में सीता जी को प्रतिष्ठित कर के ही हम राम के कोप से भी अपनी रक्षा कर सकते हैं| राम का कोप अहंकार रुपी रावण यानि अधर्माचरण करने वाले पर ही होता है| धर्माचरण ही सीता जी को निज ह्रदय में प्रतिष्ठित करना है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
२९ अगस्त २०१७

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